भए प्रगट कृपाला दीनदयाला – Bhaye Pragat Kripala Din Dayala lyrics
भजन भगवान राम के जन्म की महिमा का गुणगान करता है। इस भजन में भगवान श्रीराम के अवतरण की अद्भुत घटना का वर्णन है, जिसमें माँ कौसल्या और राजा दशरथ के लिए अपार खुशी और उत्साह की अनुभूति होती है। भगवान श्रीराम का दिव्य स्वरूप, जिनका शरीर घनश्याम (नीलवर्ण) है, जिनकी चार भुजाओं में शस्त्र धारण किए हुए हैं, और जिनकी आँखें विशाल व करुणामयी हैं, संसार के सभी दुखों का नाश करने के लिए अवतरित होते हैं।
भजन में यह भी बताया गया है कि मुनि और ऋषि-महात्मा भगवान राम के अवतरण पर जय-जयकार करते हैं और पूरा संसार इस पावन घटना से आनंदित हो जाता है। भगवान राम करुणा के सागर और दीन-दुखियों के पालनहार हैं, जिनके जन्म से धर्म और न्याय का पुनः संस्थापन होता है।
इस भजन को गाते हुए भक्त भगवान श्रीराम की कृपा, दया और उनकी लीला का स्मरण करते हैं, और उनके जीवन में भगवान के प्रति श्रद्धा और भक्ति की भावना और गहरी हो जाती है। यह भजन विशेष रूप से रामनवमी और अन्य धार्मिक अवसरों पर गाया जाता है, जब भक्तजन भगवान राम की महिमा का गुणगान करते हुए उनसे आशीर्वाद की कामना करते हैं।
भजन का महत्व
यह भजन भक्तों को भगवान राम की लीला, उनके प्रेम और करुणा को स्मरण कराता है। इसे गाते समय भक्त भगवान के प्रति समर्पण, विश्वास और आस्था के भावों से भर जाते हैं। ‘भए प्रगट कृपाला’ भजन हमें यह सिखाता है कि भगवान सदैव अपने भक्तों के कल्याण के लिए अवतरित होते हैं और संसार के सभी कष्टों का नाश करते हैं।
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला,
कौसल्या हितकारी ।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी,
अद्भुत रूप बिचारी ॥लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा,
निज आयुध भुजचारी ।
भूषन बनमाला, नयन बिसाला,
सोभासिंधु खरारी ॥
कह दुइ कर जोरी, अस्तुति तोरी,
केहि बिधि करूं अनंता ।
माया गुन ग्यानातीत अमाना,
वेद पुरान भनंता ॥
करुना सुख सागर, सब गुन आगर,
जेहि गावहिं श्रुति संता ।
सो मम हित लागी, जन अनुरागी,
भयउ प्रगट श्रीकंता ॥
ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया,
रोम रोम प्रति बेद कहै ।
मम उर सो बासी, यह उपहासी,
सुनत धीर मति थिर न रहै ॥
उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना,
चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै ।
कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई,
जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ॥
माता पुनि बोली, सो मति डोली,
तजहु तात यह रूपा ।
कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला,
यह सुख परम अनूपा ॥
सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना,
होइ बालक सुरभूपा ।
यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं,
ते न परहिं भवकूपा ॥
दोहा:
बिप्र धेनु सुर संत हित,
लीन्ह मनुज अवतार ।
निज इच्छा निर्मित तनु,
माया गुन गो पार ॥
– तुलसीदास रचित, रामचरित मानस, बालकाण्ड-192