दीपावली 2024 तिथि और मुहूर्त: Diwali 2024 Date and Muhurat
इस वर्ष दीपावली 1 नवंबर 2024, शुक्रवार को मनाई जाएगी। इस दिन माता लक्ष्मी, भगवान गणेश और कुबेर जी की पूजा का विशेष महत्व होता है। शुभ मुहूर्त में पूजन करना अत्यंत फलदायक माना जाता है।
Diwali Puja Muhurat 2024
लक्ष्मी पूजा शुक्रवार, 1 नवंबर 2024 को
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त – 05:36 PM से 06:16 PM
अवधि – 00 घंटे 41 मिनट
प्रदोष काल – 05:36 PM से 08:11 PM
वृषभ काल – 06:20 PM से 08:15 PM
स्थिर लग्न के बिना लक्ष्मी पूजा मुहूर्त
अमावस्या तिथि प्रारंभ – 31 अक्टूबर 2024 को 03:52 PM
अमावस्या तिथि समाप्त – 1 नवंबर 2024 को 06:16 PM
इस दिन, सही मुहूर्त में विधिपूर्वक पूजा करके देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करें।
Diwali Puja Vidhi : Laxmi Ganesh Kuber Puja Vidhi and Mantra दिवाली पूजन के लिए जरूरी सामग्री
पूजा में भगवान की आराधना के लिए निम्नलिखित सामग्रियों का उपयोग किया जाता है:
Diwali Puja Samagri 2024
- कलावा (मौली): इसे कलाई पर बांधा जाता है, जो सुरक्षा और शुभता का प्रतीक होता है।
- रोली: तिलक लगाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
- सिंदूर: तिलक और पूजा में उपयोग किया जाता है, विशेष रूप से देवी पूजन में।
- नारियल: इसे शुभ माना जाता है और पूजा में अर्पित किया जाता है।
- अक्षत (चावल): भगवान को चढ़ाने के लिए।
- लाल वस्त्र: पूजा में देवी-देवताओं को अर्पित करने के लिए।
- फूल: विशेष रूप से भगवान को अर्पित करने के लिए, पूजा के दौरान सुंदरता और शुद्धता का प्रतीक।
- पांच सुपारी: पूजा में अर्पण के लिए।
- लौंग: हवन और विशेष पूजा में उपयोग किया जाता है।
- पान के पत्ते: विशेष रूप से भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की पूजा में।
- घी: दीपक और हवन में उपयोग होता है।
- कलश: यह पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक होता है।
- कलश हेतु आम के पल्लव: कलश की स्थापना के लिए आम के पत्तों का उपयोग होता है।
- चौकी: पूजा सामग्री और भगवान की प्रतिमा रखने के लिए।
- समिधा: हवन में आहुति देने के लिए।
- हवन कुण्ड: हवन के लिए।
- हवन सामग्री: हवन के लिए विशेष जड़ी-बूटियां और सामग्री।
- कमल गट्टे: देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा में।
- पंचामृत: दूध, दही, घी, शहद, और गंगाजल का मिश्रण।
- फल: भगवान को अर्पित करने के लिए।
- बताशे: मिठास के प्रतीक के रूप में।
- मिठाईयां: भगवान को भोग लगाने के लिए।
- पूजा में बैठने हेतु आसन: पूजा करते समय बैठने के लिए।
- हल्दी: शुभता का प्रतीक, तिलक और पूजा में।
- अगरबत्ती: सुगंध और पवित्रता के लिए।
- कुमकुम: तिलक और देवी पूजन में।
- इत्र: भगवान को अर्पित करने के लिए सुगंधित द्रव्य।
- दीपक: ज्योति प्रज्वलित करने के लिए।
- रूई: दीपक में बाती बनाने के लिए।
- आरती की थाली: आरती करने के लिए।
- कुशा: हवन और विशेष पूजा विधियों में।
- रक्त चंदन: विशेष पूजा और तिलक के लिए।
- श्रीखंड चंदन: भगवान का अभिषेक और तिलक करने के लिए।
यह पूजा सामग्री पूरी पूजा विधि को संपन्न करने में सहायक होती है, और हर सामग्री का अपना विशेष धार्मिक महत्व होता है।
पूजन प्रारंभ करने से पहले गणेश और लक्ष्मी के विराजने के स्थान पर सुंदर रंगोली बनाएं। जिस चौकी पर आप पूजन करने वाले हैं, उसके चारों कोनों पर एक-एक दीपक प्रज्वलित करें, जिससे वातावरण पवित्र और सकारात्मक हो जाए। इसके बाद प्रतिमाओं को स्थापित करने के स्थान पर कच्चे चावल बिछाएं और फिर गणेश और लक्ष्मी की प्रतिमा को ससम्मान विराजमान करें।
इस विशेष दिन पर केवल लक्ष्मी और गणेश जी ही नहीं, बल्कि कुबेर, सरस्वती और काली माता की भी पूजा का विधान है। यदि आपके पास इनकी मूर्तियाँ उपलब्ध हों, तो उन्हें भी पूजन स्थल पर विराजमान करें और विधिपूर्वक पूजा करें।
एक मान्यता के अनुसार, देवी लक्ष्मी की पूजा भगवान विष्णु की पूजा के बिना अधूरी मानी जाती है। इसलिए देवी लक्ष्मी की प्रतिमा को भगवान विष्णु के बायीं ओर रखें और भगवान विष्णु के साथ देवी लक्ष्मी की पूजा करें। इससे आपको संपूर्ण रूप से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होगी, और आपका पूजन विधिपूर्वक सम्पन्न होगा।
दीवाली पूजन विधि और मंत्र: Diwali Puja Vidhi and Mantra
दीपावली पूजन हेतु संकल्प मंत्र:
संकल्प के बिना पूजन अधूरा माना जाता है, इसलिए संकल्प अवश्य करें। पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल (पानी वाला), मिठाई, मेवा आदि सामग्री को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प मंत्र का उच्चारण करें – ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ऊं तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2070 तमेऽब्दे पिंगल नाम संवत्सरे दक्षिणायने हेमंत ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमावस तिथौ रविवासरे हस्त नक्षत्रे आयुष्मान योगे चतुष्पद करणादिसत्सुशुभे योग (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया– श्रुतिस्मृत्यो- क्तफलप्राप्तर्थं— निमित्त महागणपति नवग्रहप्रणव सहितं कुलदेवतानां पूजनसहितं स्थिर लक्ष्मी महालक्ष्मी देवी पूजन निमित्तं एतत्सर्वं शुभ-पूजोपचारविधि सम्पादयिष्ये।
कलश का पूजन करें:
कलश पर मौली बांधें और उसके ऊपर आम के पत्ते रखें। कलश के अंदर सुपारी, दूर्वा, अक्षत, और सिक्का अर्पित करें। नारियल को वस्त्र में लपेटकर कलश के ऊपर स्थापित करें। इसके बाद, हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरुण देवता का आह्वान कलश में करें। ओ३म् त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविभि:। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु: प्रमोषी:। (अस्मिन कलशे वरुणं सांग सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि, ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥)
दीपावली गणेश पूजन मंत्र विधि:
नियम अनुसार सबसे पहले गणेश जी की पूजा करें। हाथ में फूल लेकर गणपति का ध्यान करें और मंत्र का उच्चारण करें।- गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्। आवाहन मंत्र- हाथ में अक्षत लेकर बोलें -ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ।। अक्षत पात्र में अक्षत छोड़ें।
पद्य, आर्घ्य, स्नान, आचमन मंत्र – एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् ऊं गं गणपतये नम:। इस मंत्र से चंदन लगाएं: इदम् रक्त चंदनम् लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:, इसके बाद- इदम् श्रीखंड चंदनम् बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं। अब सिन्दूर लगाएं “इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:। दूर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं। गणेश जी को लाल वस्त्र पहनाएं। इदं रक्त वस्त्रं ऊं गं गणपतये समर्पयामि।
गणेश जी को प्रसाद चढ़ाएं: इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं गं गणपतये समर्पयामि:। मिठाई अर्पित करने के लिए मंत्र: – इदं शर्करा घृत युक्त नैवेद्यं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:। अब आचमन कराएं। इदं आचमनयं ऊं गं गणपतये नम:। इसके बाद पान सुपारी दें: इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:। अब एक फूल लेकर गणपति पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि ऊं गं गणपतये नम:।
कलश पूजन के पश्चात, कुबेर और इंद्र सहित सभी देवी-देवताओं की पूजा उसी विधि से करें जैसे गणेश पूजन किया गया था। अंतर सिर्फ इतना होगा कि गणेश जी के स्थान पर संबंधित देवी-देवताओं के नामों का उच्चारण करें।
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दीपावली लक्ष्मी पूजन मंत्र विधि Diwali Laxmi Puja and Mantra
सबसे पहले लक्ष्मी का ध्यान करेंः – ॐ या सा पद्मासनस्था, विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी। गम्भीरावर्त-नाभिः, स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।। लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः। ज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः। नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।।
अब हाथ में अक्षत लेकर बोलें “ॐ भूर्भुवः स्वः महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ, एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।” प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं: ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः।। इदं रक्त चंदनम् लेपनम् से रक्त चंदन लगाएं। इदं सिन्दूराभरणं से सिन्दूर लगाएं। ‘ॐ मन्दार-पारिजाताद्यैः, अनेकैः कुसुमैः शुभैः। पूजयामि शिवे, भक्तया, कमलायै नमो नमः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।’इस मंत्र से पुष्प चढ़ाएं फिर माला पहनाएं। अब लक्ष्मी देवी को इदं रक्त वस्त्र समर्पयामि कहकर लाल वस्त्र पहनाएं।
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देवी लक्ष्मी की अंग पूजा मंत्र एवं विधि
बाएं हाथ में अक्षत लेकर दाएं हाथ से थोड़ा-थोड़ा अक्षत छोड़ते जाएं— ऊं चपलायै नम: पादौ पूजयामि ऊं चंचलायै नम: जानूं पूजयामि, ऊं कमलायै नम: कटि पूजयामि, ऊं कात्यायिन्यै नम: नाभि पूजयामि, ऊं जगन्मातरे नम: जठरं पूजयामि, ऊं विश्ववल्लभायै नम: वक्षस्थल पूजयामि, ऊं कमलवासिन्यै नम: भुजौ पूजयामि, ऊं कमल पत्राक्ष्य नम: नेत्रत्रयं पूजयामि, ऊं श्रियै नम: शिरं: पूजयामि।
अष्टसिद्धि पूजन मंत्र और विधि
अंग पूजन की भांति हाथ में अक्षत लेकर मंत्र बोलें। ऊं अणिम्ने नम:, ओं महिम्ने नम:, ऊं गरिम्णे नम:, ओं लघिम्ने नम:, ऊं प्राप्त्यै नम: ऊं प्राकाम्यै नम:, ऊं ईशितायै नम: ओं वशितायै नम:।
अष्टलक्ष्मी पूजन मंत्र और विधि
अंग पूजन एवं अष्टसिद्धि पूजा की भांति हाथ में अक्षत लेकर मंत्रोच्चारण करें। ऊं आद्ये लक्ष्म्यै नम:, ओं विद्यालक्ष्म्यै नम:, ऊं सौभाग्य लक्ष्म्यै नम:, ओं अमृत लक्ष्म्यै नम:, ऊं लक्ष्म्यै नम:, ऊं सत्य लक्ष्म्यै नम:, ऊं भोगलक्ष्म्यै नम:, ऊं योग लक्ष्म्यै नम:
प्रसाद अर्पित करने का मंत्र
” इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि” मंत्र से नैवैद्य अर्पित करें। मिठाई अर्पित करने के लिए मंत्र: “इदं शर्करा घृत समायुक्तं नैवेद्यं ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि” बालें। प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन कराएं। इदं आचमनयं ऊं महालक्ष्मियै नम:। इसके बाद पान सुपारी चढ़ाएं:- इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि। अब एक फूल लेकर लक्ष्मी देवी पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि ऊं महालक्ष्मियै नम:।
लक्ष्मी देवी की पूजा के पश्चात भगवान विष्णु और शिव जी की पूजा करने का भी विधान है। व्यापारी वर्ग अपने गल्ले की विशेष पूजा करें। पूजन पूर्ण होने के बाद क्षमा याचना करें और आरती का आयोजन करें।