देवी ब्रह्मचारिणी माँ दुर्गा का दूसरा स्वरूप हैं, जिनकी पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है। उनका नाम उनकी कठोर तपस्या से प्रेरित है, जो उन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए की थी। उनकी आराधना भक्तों को संयम, साधना, और शक्ति प्रदान करती है।
उत्पत्ति और पौराणिक कथा
देवी ब्रह्मचारिणी ने कूष्माण्डा स्वरूप धारण करने के बाद दक्ष प्रजापति के घर जन्म लिया। इस अवतार में वे एक महान सती थीं। उनका अविवाहित रूप ही ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना जाता है।
देवी ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए अत्यंत कठोर तपस्या की।
- 1000 वर्षों तक पुष्पों और फलों का आहार लिया।
- अगले 100 वर्षों तक पत्तेदार शाक-सब्जियों का सेवन किया।
- कठिन ऋतुओं (ग्रीष्म, शीत, और वर्षा) में खुले आकाश के नीचे तप किया।
- 3000 वर्षों तक केवल बिल्व पत्र का आहार किया।
- अंततः, बिना अन्न और जल के उन्होंने तपस्या जारी रखी।
उनकी कठोर तपस्या के कारण उन्हें अपर्णा भी कहा गया। उनके त्याग और समर्पण से भगवान शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया।
नवरात्रि पूजा में महत्त्व
नवरात्रि के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा का विशेष महत्त्व है। उनकी आराधना से जीवन में संयम, धैर्य, और त्याग का भाव विकसित होता है। यह दिन भक्ति और साधना की गहराई को समझने का प्रतीक है।
स्वरूप वर्णन
देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप शांत और सौम्य है।
- पादुकाहीन: वे बिना जूते के, नंगे पांव चलती हैं।
- दो भुजाएँ: उनके दो हाथ हैं।
- दाहिने हाथ में जप माला।
- बाएँ हाथ में कमण्डलु।
- वेशभूषा: उनका धवल (सफेद) परिधान उनकी पवित्रता और तपस्या का प्रतीक है।
- त्रिनेत्र: उनके तीन नेत्र उनके दिव्य ज्ञान का प्रतीक हैं।
शासनाधीन ग्रह
देवी ब्रह्मचारिणी को मंगल ग्रह का अधिपति माना जाता है। मंगल ग्रह साहस, शक्ति, और सौभाग्य का कारक है। देवी की पूजा करने से मंगल ग्रह के दुष्प्रभाव समाप्त होते हैं, और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
प्रिय पुष्प और भोग
- प्रिय पुष्प: देवी को चमेली के फूल प्रिय हैं।
- भोग: देवी को चीनी और पंचामृत का भोग लगाना शुभ माना जाता है।
पूजा विधि (नवरात्रि के दूसरे दिन)
- स्नान और ध्यान: पूजा करने से पहले स्वयं को शुद्ध करें और माँ ब्रह्मचारिणी का ध्यान करें।
- मंत्रोच्चार:
- ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः।
- भोग: चीनी और पंचामृत अर्पित करें।
- आरती और स्तुति: आरती गाकर माँ से आशीर्वाद मांगें।
प्रार्थना और स्तुति
- मूल मंत्र:
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः। - प्रार्थना:
दधाना कर पद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥ - स्तुति:
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
ध्यान (ध्यान श्लोक)
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
जपमाला कमण्डलु धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालङ्कार भूषिताम्॥
कवच (Kavach)
त्रिपुरा में हृदयम् पातु ललाटे पातु शङ्करभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पञ्चदशी कण्ठे पातु मध्यदेशे पातु महेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अङ्ग प्रत्यङ्ग सतत पातु ब्रह्मचारिणी॥
आरती (Aarti)
जय अम्बे ब्रह्मचारिणी माता। जय चतुरानन प्रिय सुख दाता॥
ब्रह्मा जी के मन भाती हो। ज्ञान सभी को सिखलाती हो॥
ब्रह्म मन्त्र है जाप तुम्हारा। जिसको जपे सरल संसारा॥
जय गायत्री वेद की माता। जो जन जिस दिन तुम्हें ध्याता॥
कमी कोई रहने ना पाये। कोई भी दुःख सहने न पाये॥
उसकी विरति रहे ठिकाने। जो तेरी महिमा को जाने॥
रद्रक्षा की माला ले कर। जपे जो मन्त्र श्रद्धा दे कर॥
आलस छोड़ करे गुणगाना। माँ तुम उसको सुख पहुँचाना॥
ब्रह्मचारिणी तेरो नाम। पूर्ण करो सब मेरे काम॥
भक्त तेरे चरणों का पुजारी। रखना लाज मेरी महतारी॥
महत्त्व और साधना
देवी ब्रह्मचारिणी का संबंध स्वाधिष्ठान चक्र से है। उनकी साधना से इस चक्र का जागरण होता है, जिससे आत्मविश्वास और आंतरिक शांति मिलती है। उनकी पूजा भक्तों को संयम और तपस्या का मार्ग दिखाती है।
सारांश
देवी ब्रह्मचारिणी तप, संयम, और भक्ति की प्रतीक हैं। उनकी पूजा जीवन में धैर्य, आत्म-नियंत्रण, और समर्पण की भावना को प्रबल करती है। नवरात्रि के दूसरे दिन उनकी आराधना से भक्तों को कठिन परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति मिलती है।
जय माँ ब्रह्मचारिणी!