देवी कालरात्रि माँ दुर्गा का सातवां रूप हैं। यह देवी पार्वती का सबसे उग्र और भयंकर स्वरूप है, जिसे शुम्भ और निशुम्भ जैसे राक्षसों का नाश करने के लिए धारण किया गया। उनकी शक्ति दुष्टों का संहार करने और भक्तों को भयमुक्त करने का प्रतीक है। उनकी पूजा नवरात्रि के सातवें दिन की जाती है।
उत्पत्ति और पौराणिक कथा
- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब देवी पार्वती ने शुम्भ और निशुम्भ राक्षसों का वध करने के लिए अपनी बाहरी स्वर्णिम त्वचा त्याग दी, तो उनका यह रौद्र रूप कालरात्रि के नाम से जाना गया।
- यह स्वरूप काल और अंधकार के नाश का प्रतीक है।
- देवी कालरात्रि की शक्ति इतनी प्रचंड है कि वे अपने भक्तों को हर प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा और बाधाओं से बचाती हैं।
- अपनी उग्रता के बावजूद, उनका आशीर्वाद भक्तों को शांति और भयमुक्त जीवन प्रदान करता है, इसलिए उन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है।
नवरात्रि पूजा में महत्त्व
देवी कालरात्रि की पूजा नवरात्रि के सप्तम दिवस पर की जाती है।
- उनकी आराधना भय, शत्रु, और नकारात्मकता से मुक्ति देती है।
- देवी की पूजा से जीवन में साहस और आत्मविश्वास का संचार होता है।
- यह दिन अज्ञान और अंधकार को दूर कर ज्ञान और प्रकाश का प्रतीक है।
स्वरूप वर्णन
देवी कालरात्रि का स्वरूप अद्भुत और शक्तिशाली है।
- वर्ण: देवी का रंग गहरा श्याम है, जो अंधकार का प्रतीक है।
- वाहन: देवी गधे पर सवार हैं।
- चतुर्भुजा:
- दाहिने हाथ: अभय मुद्रा (भय से मुक्ति) और वरद मुद्रा (आशीर्वाद)।
- बाएं हाथ: तलवार और लोहे का अंकुश।
- वेशभूषा: देवी नग्न रूप में हैं, जिससे उनकी सरलता और त्याग का प्रतीक मिलता है।
- आभूषण: देवी के गले में बिजली की माला है, जो उनकी ऊर्जा और दिव्यता का प्रतीक है।
- त्रिनेत्र: उनके तीन नेत्र दिव्यता और त्रिकालदर्शी क्षमता का प्रतीक हैं।
शासनाधीन ग्रह
देवी कालरात्रि शनि ग्रह को नियंत्रित करती हैं।
- उनकी पूजा से शनि के अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिलती है।
- शनि से संबंधित कष्ट, जैसे बाधाएं और बीमारी, दूर होती हैं।
प्रिय पुष्प और भोग
- प्रिय पुष्प: देवी को “रात की रानी” के फूल प्रिय हैं।
- भोग: देवी को गुड़ और घी का भोग अर्पित करना शुभ माना जाता है।
पूजा विधि (नवरात्रि के सातवें दिन)
- स्नान और ध्यान: स्नान करके पवित्र वस्त्र पहनें और पूजा स्थल को स्वच्छ करें।
- मंत्रोच्चार:
- ॐ देवी कालरात्र्यै नमः।
- पुष्प और भोग अर्पण: देवी को “रात की रानी” के फूल और गुड़-घी का भोग चढ़ाएं।
- आरती: देवी की आरती गाकर उनका ध्यान करें।
मंत्र और स्तुति
- मूल मंत्र:
ॐ देवी कालरात्र्यै नमः। - प्रार्थना:
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥ - स्तुति:
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
ध्यान (ध्यान श्लोक)
करालवन्दना घोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।
कालरात्रिम् करालिंका दिव्याम् विद्युतमाला विभूषिताम्॥
दिव्यम् लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्।
अभयम् वरदाम् चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम्॥
महामेघ प्रभाम् श्यामाम् तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा।
कवच (Kavach)
ऊँ क्लीं मे हृदयम् पातु पादौ श्रीकालरात्रि।
ललाटे सततम् पातु तुष्टग्रह निवारिणी॥
रसनाम् पातु कौमारी, भैरवी चक्षुषोर्भम।
कटौ पृष्ठे महेशानी, कर्णोशङ्करभामिनी॥
आरती (Aarti)
कालरात्रि जय जय महाकाली। काल के मुँह से बचाने वाली॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा। महाचण्डी तेरा अवतारा॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा। महाकाली है तेरा पसारा॥
खड्ग खप्पर रखने वाली। दुष्टों का लहू चखने वाली॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा। सब जगह देखूँ तेरा नजारा॥
सभी देवता सब नर-नारी। गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥
रक्तदन्ता और अन्नपूर्णा। कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥
ना कोई चिन्ता रहे ना बीमारी। ना कोई गम ना संकट भारी॥
उस पर कभी कष्ट ना आवे। महाकाली माँ जिसे बचावे॥
तू भी भक्त प्रेम से कह। कालरात्रि माँ तेरी जय॥
महत्त्व और साधना
- देवी कालरात्रि का संबंध सहस्रार चक्र से है।
- उनकी साधना से यह चक्र जागृत होता है, जो आत्मज्ञान और मानसिक शांति प्रदान करता है।
- उनकी आराधना से भक्तों को भय, नकारात्मकता, और सभी बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
सारांश
देवी कालरात्रि उग्रता और करुणा का अद्वितीय मिश्रण हैं। उनकी पूजा जीवन में साहस, सुरक्षा, और आत्मविश्वास प्रदान करती है। उनके आशीर्वाद से भय और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।
जय माँ कालरात्रि!