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Maa Kushmanda: नवरात्रि की चतुर्थ देवी

देवी कूष्माण्डा माँ दुर्गा का चतुर्थ स्वरूप हैं। यह रूप ब्रह्मांड की उत्पत्ति और जीवन की ऊर्जा का प्रतीक है। माना जाता है कि देवी कूष्माण्डा ने अपनी मधुर मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की, इसलिए उन्हें सृष्टि की जननी कहा जाता है। सूर्य के समान तेजस्वी और अष्टभुजा धारिणी होने के कारण उनकी पूजा नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है।


उत्पत्ति और पौराणिक कथा

देवी कूष्माण्डा का उदय तब हुआ जब सृष्टि नहीं थी और केवल अंधकार व्याप्त था। अपनी मुस्कान से उन्होंने प्रकाश और ब्रह्मांड की रचना की।

  1. कूष्माण्डा का अर्थ है “कू” (छोटा), “उष्मा” (ऊर्जा या गर्मी), और “अंडा” (ब्रह्मांड)।
  2. यह माना जाता है कि देवी ने ब्रह्मांड को अपने शरीर से उत्पन्न किया और इसे जीवन और ऊर्जा प्रदान की।
  3. देवी ने सूर्य मंडल के केंद्र में निवास किया, जो उनकी अनंत ऊर्जा और क्षमता का प्रतीक है।

नवरात्रि पूजा में महत्त्व

नवरात्रि के चौथे दिन देवी कूष्माण्डा की पूजा की जाती है। उनकी आराधना से मानसिक शांति, स्वास्थ्य, और समृद्धि प्राप्त होती है। यह दिन ऊर्जा, सकारात्मकता, और आत्मविश्वास को बढ़ाने का प्रतीक है।


स्वरूप वर्णन

देवी कूष्माण्डा का स्वरूप अत्यंत दिव्य और तेजस्वी है।

  • वाहन: देवी सिंह पर सवार हैं।
  • अष्टभुजाएँ: उनकी आठ भुजाएँ हैं, जिनमें विभिन्न वस्तुएं धारण हैं:
    • दाहिने हाथ: कमण्डलु, धनुष, बाण, और कमल।
    • बाएँ हाथ: अमृत कलश, जप माला, गदा, और चक्र।
  • वेशभूषा: देवी का रूप स्वर्णिम आभा से युक्त है, और वे लाल रंग के वस्त्र धारण करती हैं।
  • मुस्कान: उनकी मुस्कान से ब्रह्मांड का निर्माण हुआ।
  • त्रिनेत्र: उनके तीन नेत्र दिव्यता और त्रिकालदर्शी क्षमता का प्रतीक हैं।

शासनाधीन ग्रह

देवी कूष्माण्डा सूर्य ग्रह को नियंत्रित करती हैं।

  • सूर्य मंडल की अधिष्ठात्री होने के कारण, उनकी पूजा से सूर्य ग्रह के अशुभ प्रभाव समाप्त होते हैं।
  • सूर्य से संबंधित समस्याओं, जैसे स्वास्थ्य और आत्मविश्वास की कमी, का निवारण होता है।

प्रिय पुष्प और भोग

  • प्रिय पुष्प: देवी को लाल रंग के पुष्प अत्यंत प्रिय हैं।
  • भोग: देवी को श्वेत कद्दू (कूष्माण्ड) का भोग लगाना शुभ माना जाता है।

पूजा विधि (नवरात्रि के चौथे दिन)

  1. स्नान और ध्यान: स्वयं को शुद्ध करके पूजा स्थल को स्वच्छ करें।
  2. कलश स्थापना: कलश को गंगाजल से भरें और दीप जलाएं।
  3. मंत्रोच्चार:
    • ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः।
  4. भोग अर्पण: देवी को श्वेत कद्दू और लाल पुष्प अर्पित करें।
  5. आरती: आरती गाएं और देवी का ध्यान करें।

मंत्र और स्तुति

  • मूल मंत्र:
    ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः।
  • प्रार्थना:
    सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
    दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
  • स्तुति:
    या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

ध्यान (ध्यान श्लोक)

वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥
भास्वर भानु निभाम् अनाहत स्थिताम् चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पद्म, सुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।


कवच (Kavacha)

हंसरै में शिर पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।
हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा।
पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।
दिग्विदिक्षु सर्वत्रेव कूं बीजम् सर्वदावतु॥


आरती (Aarti)

कूष्माण्डा जय जग सुखदानी। मुझ पर दया करो महारानी॥
पिङ्गला ज्वालामुखी निराली। शाकम्बरी माँ भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे। भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा। स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदम्बे। सुख पहुँचाती हो माँ अम्बे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा। पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
माँ के मन में ममता भारी। क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा। दूर करो माँ संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो। मेरे तुम भण्डारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याये। भक्त तेरे दर शीश झुकाये॥


महत्त्व और साधना

देवी कूष्माण्डा का संबंध अनाहत चक्र से है। उनकी साधना से यह चक्र जागृत होता है, जिससे जीवन में प्रेम, करुणा, और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। उनकी पूजा से मानसिक और शारीरिक शक्ति प्राप्त होती है।


सारांश

देवी कूष्माण्डा ब्रह्मांड की ऊर्जा और सृजन की देवी हैं। उनकी पूजा से भक्तों को स्वास्थ्य, समृद्धि, और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वे भक्तों के सभी संकटों का निवारण करती हैं और जीवन को उज्ज्वल बनाती हैं।

जय माँ कूष्माण्डा!

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