देवी सिद्धिदात्री माँ दुर्गा का नौवां स्वरूप हैं। उनका यह रूप सभी सिद्धियों की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रसिद्ध है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवी ने भगवान शिव को भी सिद्धियाँ प्रदान कीं, जिससे उन्हें अर्धनारीश्वर की उपाधि प्राप्त हुई। उनकी पूजा से मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
उत्पत्ति और पौराणिक कथा
- सृष्टि की रचना से पहले, भगवान रुद्र ने सृजन के उद्देश्य से आदि-पराशक्ति की आराधना की।
- आदि-पराशक्ति का कोई निश्चित आकार या स्वरूप नहीं था।
- उनकी आराधना से देवी सिद्धिदात्री प्रकट हुईं, जो भगवान शिव के वाम अंश से प्रकट हुई शक्ति थीं।
- देवी ने भगवान शिव को 18 प्रकार की सिद्धियाँ प्रदान कीं, जिनसे शिव अर्धनारीश्वर बने।
देवी सिद्धिदात्री की कृपा से केवल मनुष्य ही नहीं, बल्कि देवता, असुर, गंधर्व, यक्ष, और सिद्ध भी सिद्धियाँ प्राप्त करते हैं।
नवरात्रि पूजा में महत्त्व
नवरात्रि के नवें दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।
- उनकी पूजा से सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
- यह दिन भक्तों के लिए मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।
- देवी की आराधना से सभी प्रकार की बाधाओं और कष्टों का नाश होता है।
स्वरूप वर्णन
देवी सिद्धिदात्री का स्वरूप अत्यंत दिव्य और मनोहर है।
- वाहन: देवी सिंह पर सवार हैं।
- चतुर्भुजा:
- दाहिने हाथों में गदा और चक्र।
- बाएं हाथों में शंख और कमल।
- वेशभूषा: देवी लाल और सुनहरे रंग के वस्त्र धारण करती हैं।
- सिंहासन: देवी कमल पुष्प पर विराजमान हैं।
- त्रिनेत्र: उनके तीन नेत्र ज्ञान, शक्ति, और करुणा के प्रतीक हैं।
शासनाधीन ग्रह
देवी सिद्धिदात्री केतु ग्रह को शासित करती हैं।
- उनकी पूजा से केतु ग्रह के अशुभ प्रभाव समाप्त होते हैं।
- केतु से संबंधित मानसिक और शारीरिक कष्टों का निवारण होता है।
प्रिय पुष्प और भोग
- प्रिय पुष्प: देवी को “रात की रानी” के फूल अत्यंत प्रिय हैं।
- भोग: देवी को तिल और गुड़ का भोग चढ़ाना शुभ माना जाता है।
पूजा विधि (नवरात्रि के नवें दिन)
- स्नान और ध्यान: प्रातःकाल स्नान करके पवित्र वस्त्र पहनें।
- कलश स्थापना: पूजा स्थल पर कलश स्थापित करें और देवी का ध्यान करें।
- मंत्रोच्चार:
- ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः।
- पुष्प और भोग अर्पण: देवी को तिल, गुड़, और “रात की रानी” के पुष्प अर्पित करें।
- आरती: देवी की आरती गाकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
मंत्र और स्तुति
- मूल मंत्र:
ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः। - प्रार्थना:
सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥ - स्तुति:
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
ध्यान (ध्यान श्लोक)
वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
कमलस्थिताम् चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्विनीम्॥
स्वर्णवर्णा निर्वाणचक्र स्थिताम् नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शङ्ख, चक्र, गदा, पद्मधरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
कवच (Kavach)
ॐकारः पातु शीर्षो माँ, ऐं बीजम् माँ हृदयो।
हीं बीजम् सदापातु नभो गृहो च पादयो॥
ललाट कर्णो श्रीं बीजम् पातु क्लीं बीजम् माँ नेत्रम् घ्राणो।
कपोल चिबुको हसौ पातु जगत्प्रसूत्यै माँ सर्ववदनो॥
आरती (Aarti)
जय सिद्धिदात्री माँ तू सिद्धि की दाता। तु भक्तों की रक्षक तू दासों की माता॥
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि। तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि॥
कठिन काम सिद्ध करती हो तुम। जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम॥
तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है। तू जगदम्बें दाती तू सर्व सिद्धि है॥
रविवार को तेरा सुमिरन करे जो। तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो॥
तू सब काज उसके करती है पूरे। कभी काम उसके रहे ना अधूरे॥
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया। रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया॥
सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली। जो है तेरे दर का ही अम्बें सवाली॥
महत्त्व और साधना
- देवी सिद्धिदात्री का संबंध निर्वाण चक्र से है।
- उनकी साधना से निर्वाण चक्र जागृत होता है, जो आत्मज्ञान और मोक्ष प्रदान करता है।
- उनकी पूजा से भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की इच्छाएँ पूर्ण होती हैं।
सारांश
देवी सिद्धिदात्री सिद्धियों की देवी हैं, जो भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियाँ और मोक्ष प्रदान करती हैं। उनकी पूजा से जीवन में शांति, सफलता, और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
जय माँ सिद्धिदात्री!
देवी सिद्धिदात्री और नवमी पूजा से जुड़े सामान्य प्रश्न (FAQs)
प्रश्न 1: देवी सिद्धिदात्री कौन हैं?
उत्तर:
देवी सिद्धिदात्री माँ दुर्गा का नौवां स्वरूप हैं, जिन्हें सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्रदान करने वाली देवी कहा जाता है। वह भगवान शिव के वाम अंग से प्रकट हुई थीं और भक्तों को ज्ञान, समृद्धि और मोक्ष प्रदान करती हैं।
प्रश्न 2: देवी सिद्धिदात्री की पूजा नवमी को क्यों की जाती है?
उत्तर:
नवमी, जिसे महानवमी भी कहा जाता है, देवी सिद्धिदात्री को समर्पित है। यह दिन आध्यात्मिक विकास की पराकाष्ठा और शांति व मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक है।
प्रश्न 3: देवी सिद्धिदात्री की पूजा का क्या महत्व है?
उत्तर:
देवी सिद्धिदात्री की पूजा से भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियाँ, ज्ञान और सफलता प्राप्त होती है। उनकी कृपा से केतु ग्रह के दोष समाप्त होते हैं और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
प्रश्न 4: देवी सिद्धिदात्री का मंत्र क्या है?
उत्तर:
देवी सिद्धिदात्री का मूल मंत्र है:
ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः।
प्रश्न 5: देवी सिद्धिदात्री का वाहन और स्वरूप क्या है?
उत्तर:
देवी सिद्धिदात्री सिंह पर सवार हैं और कमल के पुष्प पर विराजमान हैं। उनके चार हाथ हैं, जिनमें गदा, चक्र, शंख, और कमल सुशोभित हैं। उनका स्वरूप अत्यंत दिव्य और मनोहर है।
प्रश्न 6: देवी सिद्धिदात्री को कौन-कौन पूजते हैं?
उत्तर:
देवी सिद्धिदात्री की पूजा केवल मनुष्य ही नहीं, बल्कि देवता, यक्ष, गंधर्व, असुर और सिद्ध भी करते हैं। उनकी कृपा से सभी को सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
प्रश्न 7: देवी सिद्धिदात्री की पूजा में कौन-सा भोग चढ़ाया जाता है?
उत्तर:
देवी सिद्धिदात्री को तिल और गुड़ का भोग चढ़ाना शुभ माना जाता है।
प्रश्न 8: नवमी के दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा से क्या लाभ मिलता है?
उत्तर:
नवमी के दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा से जीवन की सभी बाधाएँ दूर होती हैं। भक्तों को सिद्धियाँ, ज्ञान, और शांति प्राप्त होती है, साथ ही केतु ग्रह के दोषों से मुक्ति मिलती है।