प्रदोष व्रत कथा | Pradosh Vrat Katha in Hindi
प्रदोष व्रत की कथा प्रायः विभिन्न वारों के अनुसार सुनाई जाती है, लेकिन एक विशेष कथा बहुत प्रचलित है।
एक समय की बात है, एक छोटे से गांव में एक गरीब विधवा ब्राह्मणी और उसका एकलौती संतान रहता था। ब्राह्मणी और उसके पुत्र दिन-रात भिक्षा मांगते और जो भी मिल जाता, उसी से अपनी भूख मिटाते। ब्राह्मणी ने वर्षों से प्रदोष व्रत का पालन किया था, जिसके चलते उसकी भक्ति और तपस्या से भगवान शिव हमेशा प्रभावित रहते थे।
एक दिन, त्रयोदशी तिथि पर, ब्राह्मणी का पुत्र गंगा स्नान के लिए निकला। स्नान के बाद, जब वह घर की ओर लौट रहा था, उसे लुटेरों का एक गिरोह मिल गया। लुटेरों ने उसका सारा सामान लूट लिया और उसे घायल कर छोड़ दिया। कुछ समय बाद, राज्य के सैनिक उस स्थान पर पहुंचे और उन्होंने ब्राह्मणी के पुत्र को लुटेरा समझकर राजा के सामने पेश कर दिया। राजा ने बिना किसी जांच के उसे कारागार में डाल दिया।
रात को राजा को स्वप्न में भगवान शिव ने दर्शन दिए और उन्हें आदेश दिया कि ब्राह्मणी के पुत्र को तुरंत मुक्त किया जाए। राजा ने स्वप्न को गंभीरता से लिया और अगली सुबह कारागार पहुंचकर युवक को रिहा कर दिया।
राजमहल लौटने पर, राजा ने युवक को सम्मानित किया और उससे दान मांगने के लिए कहा। युवक ने राजा से केवल एक मुठ्ठी धान मांगी। राजा उसकी यह मांग सुनकर आश्चर्यचकित हुए और पूछा कि केवल एक मुठ्ठी धान से क्या होगा, और भी कुछ मांग लो। युवक ने विनम्रता से जवाब दिया कि यह धान उसके लिए संसार का सबसे मूल्यवान धन है। वह इसे अपनी माता को देगा, जो इसका उपयोग भगवान शिव को भोग अर्पित करने में करेंगी। फिर वे खुद इसे खाकर अपनी भूख को शांत करेंगे।
राजा युवक की भक्ति और विनम्रता से अत्यंत प्रभावित हुए। उन्होंने मंत्री को आदेश दिया कि ब्राह्मणी को सम्मानपूर्वक दरबार में लाया जाए। जब ब्राह्मणी दरबार में पहुंची, तो राजा ने उसे पूरी घटना की जानकारी दी और उसके पुत्र की प्रशंसा की। उन्होंने ब्राह्मणी के पुत्र को अपना सलाहकार नियुक्त किया, और इस प्रकार, निर्धन ब्राह्मणी और उसके पुत्र का जीवन बदल गया।