शनिवार व्रत कथा | Shanivar Vrat Katha
प्राचीन काल में देवता, ऋषि-मुनि और ग्रह स्वर्गलोक से लेकर पृथ्वी तक यात्रा कर सकते थे। एक दिन, स्वर्गलोक में निवास करने वाले नवग्रहों के बीच यह विवाद छिड़ गया कि उनमें सबसे शक्तिशाली ग्रह कौन है। इस विवाद ने इतना बढ़ा कि धरती पर भी इसका असर दिखने लगा। देवताओं के राजा इंद्र ने नवग्रहों को दरबार में बुलाया और उनकी समस्या सुनी, लेकिन समाधान नहीं मिल सका। उन्होंने नवग्रहों को राजा विक्रमादित्य के पास जाने की सलाह दी, क्योंकि उनके अनुसार, विक्रमादित्य ही इस प्रश्न का उत्तर दे सकते थे।
नवग्रह राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचे और पूछा कि कौन सा ग्रह सबसे बड़ा और शक्तिशाली है। विक्रमादित्य पहले तो थोड़े चिंतित हुए, लेकिन उन्होंने सोचा कि अगर उन्होंने कोई सीधा जवाब दिया तो ग्रहों के बीच विवाद बढ़ जाएगा। उन्होंने एक चतुर समाधान निकाला—हर ग्रह के लिए सोने, चांदी और लोहे के सिंहासन बनवाए और कहा कि जो ग्रह सबसे पहले आए, उसका सिंहासन सोने का होगा, जो सबसे पीछे रहेगा, वह सबसे छोटा होगा। शनिदेव का सिंहासन सबसे पीछे था, जो लोहे का था।
जब शनिदेव ने देखा कि उनका सिंहासन सबसे पीछे है, वे नाराज हो गए। उन्होंने विक्रमादित्य से कहा, “तुमने मेरी शक्ति और महत्व को नजरअंदाज किया है। सूर्य, बुध, शुक्र एक राशि में एक महीने रहते हैं, मंगल डेढ़ महीने, चंद्रमा दो महीने और बृहस्पति तेरह महीने रहते हैं, लेकिन मैं एक राशि में दो से सात साल तक रहता हूं। तुमने मुझे अपमानित किया है।” यह कहकर शनिदेव अंतर्ध्यान हो गए।
फिर एक दिन विक्रमादित्य पर शनिदेव की साढ़े साती का प्रभाव आया। शनिदेव घोड़ा व्यापारी के रूप में विक्रमादित्य के दरबार में पहुंचे। विक्रमादित्य ने एक घोड़ा खरीदा और उस पर सवार हो गए। लेकिन घोड़ा अचानक पंख लगा कर विक्रमादित्य को एक घने जंगल में ले गया और वहां पटक कर अदृश्य हो गया। विक्रमादित्य जंगल में भटकने लगे और वापस अपने राज्य का रास्ता खो बैठे।
वह एक चरवाहे से मिले, जिससे उन्होंने अपनी अंगूठी देकर पानी माँगा और पास के नगर का रास्ता पूछा। थक कर, विक्रमादित्य ने एक सेठ की दुकान पर विश्राम किया। अचानक, सेठ की दुकान पर भीड़ बढ़ गई। सेठ ने सोचा कि यह व्यक्ति भाग्यशाली है और उसे भोजन करने का निमंत्रण दिया। सेठ थोड़ी देर के लिए बाहर चला गया और विक्रमादित्य ने देखा कि खूंटी पर टंगा हार गायब हो रहा है। जब सेठ लौटे, तो हार गायब देखकर उसे विक्रमादित्य पर शक हुआ और उसने सैनिकों को बुलाकर विक्रमादित्य को गिरफ्तार करवा दिया। नगर के राजा ने विक्रमादित्य के हाथ-पैर कटवाने का आदेश दे दिया। विक्रमादित्य की स्थिति बहुत दयनीय हो गई।
इसी बीच, एक तेली ने विक्रमादित्य पर दया की और उन्हें अपने कोल्हू पर काम करने को कहा। इससे विक्रमादित्य को दो जून की रोटी का जुगाड़ मिल गया। समय बीतते गया और शनिदेव की साढ़े साती समाप्त हो गई।
वर्षा ऋतु में एक दिन, विक्रमादित्य ने मल्हार गाना शुरू किया, जब पास से राजकुमारी मनभावनी की सवारी गुज़री। मनभावनी विक्रमादित्य की आवाज से मंत्रमुग्ध हो गई और जानने पर पाया कि विक्रमादित्य अपंग हैं। फिर भी, राजकुमारी ने विक्रमादित्य से विवाह करने का निर्णय लिया। विवाह के बाद, विक्रमादित्य और मनभावनी तेली के घर में रहने लगे। स्वप्न में शनिदेव ने विक्रमादित्य को दर्शन दिए और कहा, “तुमने मेरे प्रकोप का सामना किया है। मैंने तुम्हें अपने अपमान का दंड दिया। अब मैं तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार करता हूँ। जो भी मेरे लिए व्रत करेगा, मेरी पूजा करेगा और व्रत कथा सुनेगा, उसके सारे कष्ट दूर हो जाएंगे और उसकी इच्छाएं पूरी होंगी।”
इस वाक्य के बाद शनिदेव अदृश्य हो गए। सुबह विक्रमादित्य के हाथ-पैर ठीक हो गए और यह देखकर राजकुमारी खुशी से झूम उठी। विक्रमादित्य ने मनभावनी को अपनी पूरी कहानी सुनाई। राजा ने राज्य लौटने की इच्छा जताई। सेठ ने जब इस घटना को सुना, तो वह राजा के पास पहुंचा और माफी मांगी। विक्रमादित्य ने उसे क्षमा कर दिया और सेठ ने उन्हें फिर से भोजन का निमंत्रण दिया। इस बार, हार वापस खूंटी पर आ गया। यह देखकर सभी ने शनिदेव की शक्ति को नमन किया। नगर सेठ ने अपनी बेटी का विवाह विक्रमादित्य से करवा दिया।
राजा विक्रमादित्य ने अपने राज्य में लौटकर नगरवासियों को बताया कि शनिदेव सबसे शक्तिशाली ग्रह हैं। उन्होंने बताया कि प्रत्येक पुरुष और महिला को शनिवार को शनिदेव की पूजा करनी चाहिए और व्रत कथा सुननी चाहिए ताकि उनकी सभी मनोकामनाएँ पूरी हों और कष्ट दूर हों।