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सोमवार व्रत कथा

सोमवार व्रत कथा | Somvar Vrat Katha in Hindi

भारतीय परंपरा और हिंदू धर्म में तीज-त्योहारों का अपना विशेष महत्व है। हिंदू धर्म में हर दिन किसी न किसी देवता की पूजा की जाती है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, सोमवार को भगवान शिव का दिन माना जाता है। इस दिन शिवजी की पूजा करने से उनके आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। सोमवार का व्रत रखने से भगवान शिव जल्दी प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। विशेषकर विवाहित महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन की सुख-समृद्धि के लिए और अविवाहित कन्याएं योग्य वर प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं।

ज्योतिष के अनुसार, सोमवार का व्रत चार प्रकार से किया जाता है: सोमवार व्रत, प्रदोष व्रत, सावन सोमवार व्रत और सोलह सोमवार व्रत। इन व्रतों के द्वारा भगवान शिव की विधिवत पूजा और व्रत कथा का पाठ किया जाता है।

पौराणिक कथा

एक समय की बात है, एक गांव में एक धनी साहूकार रहता था। उसके पास अपार धन-संपत्ति थी, परंतु संतान का सुख नहीं था। संतान की प्राप्ति की इच्छा से साहूकार प्रत्येक सोमवार भगवान शिव का व्रत रखता था। वह विधिपूर्वक शिव-पार्वती की पूजा करता और शाम को शिवलिंग पर दीप जलाता। एक दिन माता पार्वती ने साहूकार की भक्ति से प्रभावित होकर भगवान शिव से उसकी मनोकामना पूरी करने का आग्रह किया।

भगवान शिव ने कहा कि संसार में प्रत्येक व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल मिलता है, लेकिन माता पार्वती के बार-बार आग्रह करने पर शिवजी ने साहूकार को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। हालांकि, उन्होंने बताया कि उसका पुत्र केवल 12 वर्ष तक जीवित रहेगा।

साहूकार ने पुत्र प्राप्ति के बाद भी अपनी पूजा-अर्चना जारी रखी। कुछ समय बाद उसकी पत्नी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया। साहूकार को पहले से ही पता था कि उसका पुत्र केवल 12 वर्ष तक जीवित रहेगा, इसलिए वह प्रसन्न नहीं था। जब उसका पुत्र 11 वर्ष का हुआ, तो साहूकार ने उसे काशी शिक्षा प्राप्ति के लिए भेज दिया।

रास्ते में, साहूकार का पुत्र और उसका मामा एक राजा के विवाह समारोह में पहुंचे। राजा अपनी पुत्री का विवाह एक ऐसे राजकुमार से कर रहा था जो काना था। राजकुमार के पिता ने साहूकार के पुत्र को अस्थायी रूप से दूल्हा बनने के लिए मना लिया। साहूकार के पुत्र ने दूल्हे का रूप धारण कर विवाह की रस्में पूरी कीं, लेकिन उसने दुल्हन के कपड़ों पर एक संदेश लिख दिया कि वह असली दूल्हा नहीं है, और असली दूल्हा काना है।

विवाह के बाद, साहूकार का पुत्र काशी चला गया और शिक्षा प्राप्त करने लगा। जब वह 12 वर्ष का हुआ, उसकी मृत्यु हो गई। उसके मामा ने यज्ञ पूरा करने के बाद दुखी मन से विलाप किया। उसी समय भगवान शिव और माता पार्वती वहां से गुजर रहे थे। माता पार्वती ने साहूकार के पुत्र को जीवित करने का अनुरोध किया। शिवजी ने माता पार्वती के आग्रह पर उसे जीवनदान दिया।

साहूकार का पुत्र जीवित होकर वापस अपने घर लौटा। उसका विवाह पूर्व में जिस लड़की से हुआ था, वह भी उसे पहचान कर उसके साथ घर आ गई। साहूकार का परिवार फिर से सुखी और संपन्न जीवन व्यतीत करने लगा।

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