Vakratunda Mahakaya Shlok in hindi
यह श्लोक भगवान गणेश की प्रार्थना के रूप में अत्यंत प्रसिद्ध है और इसे प्रायः किसी भी शुभ कार्य, पूजा, यज्ञ, या नई शुरुआत से पहले बोला जाता है। गणेश जी को “विघ्नहर्ता” कहा जाता है, अर्थात् वे सभी प्रकार की बाधाओं और विघ्नों को दूर करते हैं। आइए श्लोक और उसके प्रत्येक भाग को विस्तार से समझते हैं:
श्लोक:
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
विस्तृत अर्थ:
- वक्रतुण्ड (Vakratunda): “वक्र” का अर्थ है “टेढ़ा” और “तुण्ड” का अर्थ है “सूंड”। भगवान गणेश की सूंड टेढ़ी होती है, जो उनके वक्रतुण्ड रूप का प्रतीक है। यह रूप गणेश जी की अनंत बुद्धिमत्ता और उनके समस्याओं को हल करने की क्षमता को दर्शाता है। टेढ़ी सूंड से यह संकेत मिलता है कि वे किसी भी जटिल समस्या को सरलता से हल कर सकते हैं।
- महाकाय (Mahakaya): “महाकाय” का अर्थ है “विशाल शरीर वाले”। भगवान गणेश का विशाल शरीर इस बात का प्रतीक है कि वे संसार की समस्त शक्तियों के स्वामी हैं। उनका यह रूप स्थिरता, संतुलन और दृढ़ता को दर्शाता है, जो हर कार्य में आवश्यक होते हैं।
- सूर्यकोटि समप्रभः (Suryakoti Samaprabha): “सूर्यकोटि” का अर्थ है “करोड़ों सूर्यों के समान” और “समप्रभः” का अर्थ है “प्रकाशमान”। गणेश जी का तेज करोड़ों सूर्यों के समान है, जो उनके अत्यधिक शक्तिशाली और ज्ञानवान होने का प्रतीक है। इस प्रकाश के माध्यम से वे सभी प्रकार के अंधकार (अज्ञान, अवरोध, और बाधाएँ) को दूर करते हैं।
- निर्विघ्नं कुरु मे देव (Nirvighnam Kuru Me Deva): “निर्विघ्नं” का अर्थ है “बिना विघ्न (बाधा) के”। यहां भगवान गणेश से प्रार्थना की जाती है कि वे कृपा करके हमारे सभी कार्यों को बिना किसी बाधा के सफलतापूर्वक पूरा करें। यह वाक्यांश उनके “विघ्नहर्ता” स्वरूप की महत्ता को दर्शाता है।
- सर्वकार्येषु सर्वदा (Sarvakaryeshu Sarvada): “सर्वकार्येषु” का अर्थ है “सभी कार्यों में” और “सर्वदा” का अर्थ है “सदैव”। यह पंक्ति गणेश जी से यह निवेदन करती है कि वे हर समय, हर कार्य में हमारा मार्गदर्शन करें और हमें सफलता प्रदान करें।
महत्वपूर्ण पहलू:
- गणेश जी का महत्व: गणेश जी को किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत में सबसे पहले पूजने का रिवाज है। उन्हें “प्रथम पूज्य” कहा जाता है क्योंकि वे सभी कार्यों को निर्विघ्न रूप से संपन्न करने की शक्ति रखते हैं।
- आध्यात्मिक संदेश: यह श्लोक इस बात का प्रतीक है कि किसी भी कार्य को करने से पहले विनम्रता और समर्पण भाव से ईश्वर की शरण में जाना चाहिए। गणेश जी की स्तुति से व्यक्ति के भीतर आत्मविश्वास और शांति का संचार होता है।
यह श्लोक न केवल धार्मिक संदर्भ में महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका गहरा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी है।
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