Bhootnath-Ashtakam

भूतनाथ अष्टकम् (Bhootnath Ashtakam)

भूतनाथ अष्टकम्- Bhootnath Ashtakam Lyrics

भगवान शिव की स्तुति में रचित एक प्रसिद्ध अष्टक है, जिसे भूतनाथ के रूप में उनकी उपासना के लिए गाया जाता है। यह अष्टक भगवान शिव की शक्ति, उनके भूतनाथ स्वरूप और उनके रक्षक रूप का वर्णन करता है। भूतनाथ अष्टकम् का नियमित पाठ भक्तों के लिए अनेक आध्यात्मिक और मानसिक लाभ लेकर आता है।

भूतनाथ अष्टकम् के लाभ:

  1. सभी प्रकार के भय से मुक्ति: भूतनाथ शिव का यह अष्टक जीवन के हर प्रकार के भय, चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक, से मुक्ति दिलाता है। इसे पढ़ने से सुरक्षा और साहस की भावना बढ़ती है।
  2. नकारात्मक शक्तियों से रक्षा: भगवान शिव का भूतनाथ रूप भूत-प्रेत और अन्य नकारात्मक शक्तियों को नियंत्रित करता है। इस अष्टक का पाठ करने से ऐसी शक्तियों से बचाव होता है।
  3. शांति और मानसिक स्थिरता: भूतनाथ अष्टकम् का नियमित पाठ मन को शांति और स्थिरता प्रदान करता है। यह मानसिक तनाव और चिंता को दूर करने में सहायक होता है।
  4. जीवन में सकारात्मकता: इस अष्टक का पाठ जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और उत्साह लाता है। इसके प्रभाव से मन शांत और एकाग्र होता है, जिससे सकारात्मक सोच और कर्म की दिशा में प्रवृत्त होता है।
  5. रोगों से मुक्ति: भूतनाथ अष्टकम् का पाठ करने से शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है। भगवान शिव की कृपा से आरोग्य में वृद्धि होती है।
  6. आध्यात्मिक उन्नति: यह अष्टक आध्यात्मिक जागृति और उन्नति के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है। इससे भक्त के भीतर ध्यान और साधना की शक्ति में वृद्धि होती है।
  7. कष्टों का नाश: भगवान शिव का भूतनाथ स्वरूप भक्तों के सभी प्रकार के कष्टों और बाधाओं का नाश करता है, जिससे जीवन सरल और समृद्ध बनता है।

भूतनाथ अष्टकम् का पाठ विधि:

  1. शुद्धता और स्वच्छता: सबसे पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थान को साफ करें और भगवान शिव की प्रतिमा या चित्र के सामने आसन लगाएं।
  2. पूजा स्थान: भगवान शिव का एक चित्र या मूर्ति पूजा स्थान पर रखें और दीपक, धूप या अगरबत्ती जलाएं।
  3. आरंभिक प्रार्थना: पाठ से पहले भगवान शिव का आह्वान करें। उन्हें जल, फूल, और फल अर्पित करें।
  4. संकल्प: मन में किसी विशेष इच्छा या मनोकामना के लिए संकल्प लेकर पाठ आरंभ करें।
  5. एकाग्रता: भूतनाथ अष्टकम् का पाठ पूरी एकाग्रता और भक्ति के साथ करें। मन को शांत रखें और भगवान शिव के भूतनाथ रूप का ध्यान करते हुए पाठ करें।
  6. पाठ का समय: यह अष्टक दिन में किसी भी समय पढ़ा जा सकता है, परंतु ब्रह्ममुहूर्त (प्रातःकाल) या संध्या समय शिव जी की आराधना के लिए सर्वोत्तम माने जाते हैं। सोमवार को या महाशिवरात्रि जैसे विशेष अवसरों पर इसका पाठ विशेष फलदायी होता है।
  7. श्रद्धा और समर्पण: पाठ के अंत में भगवान शिव को प्रणाम करें और उन्हें पुष्प, फल, और मिठाई अर्पित करें।
  8. ध्यान और ध्यान मुद्रा: पाठ के बाद कुछ समय ध्यान करें। भगवान शिव की कृपा और शांति का अनुभव करने की कोशिश करें।

भूतनाथ अष्टकम् का नियमित पाठ करने से जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं और भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।

भूतनाथ अष्टकम्

श्री विष्णुपुत्रं शिवदिव्यबालं मोक्ष प्रदं दिव्यजनाभिवन्द्यम् ।
कैलासनाथ प्रणवस्वरूपं श्रीभूतनाथं मनसा स्मरामि ॥ १॥

अज्ञानघोरान्ध धर्म प्रदीपं प्रज्ञानदान प्रणवं कुमारम् ।
लक्ष्मीविलासैकनिवासरङ्गं श्रीभूतनाथं मनसा स्मरामि ॥ २॥

लोकैकवीरं करुणातरङ्गं सद्भक्तदृश्यं स्मरविस्मयाङ्गम् ।
भक्तैकलक्ष्यं स्मरसङ्गभङ्गं श्रीभूतनाथं मनसा स्मरामि ॥ ३॥

लक्ष्मी तव प्रौढमनोहर श्री सौन्दर्य सर्वस्व विलासरङ्गम् ।
आनन्द सम्पूर्ण कटाक्षलोलं श्रीभूतनाथं मनसा स्मरामि ॥ ४॥

पूर्णकटाक्ष प्रभयाविमिश्रं सम्पूर्ण सुस्मेर विचित्रवक्त्रम् ।
मायाविमोह प्रकरप्रणाशं श्रीभूतनाथं मनसा स्मरामि ॥ ५॥

विश्वाभिरामं गुणपूर्णवर्णं देहप्रभानिर्जित कामदेवम् ।
कुपेट्य दुःखर्व विषादनाशं श्रीभूतनाथं मनसा स्मरामि ॥ ६॥

मालाभिरामं परिपूर्णरूपं कालानुरूप प्रकाटावतारम् ।
कालान्तकानन्दकरं महेशं श्रीभूतनाथं मनसा स्मरामि ॥ ७॥

पापापहं तापविनाशमीशं सर्वाधिपत्य परमात्मनाथम् ।
श्रीसूर्यचन्द्राग्निविचित्रनेत्रं श्रीभूतनाथं मनसा स्मरामि ॥ ८॥

॥ इति श्रीभूतनाथमानसाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

मंत्र का मूल रूप

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम: शिवाय ॥1॥

मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय, नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय ।
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय, तस्मै मकाराय नम: शिवाय ॥2॥

शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय, तस्मै शिकाराय नम: शिवाय ॥3॥

वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय ।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय, तस्मै वकाराय नम: शिवाय ॥4॥

यक्षस्वरूपाय जटाधराय, पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय, तस्मै यकाराय नम: शिवाय ॥5॥

पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥6॥


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