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श्री हनुमान हृदय मालिका Shri Hanuman Hridaya Malika

श्री हनुमान हृदय मालिका Shri Hanuman Hridaya Malika in Hindi

श्री हनुमान हृदय मालिका एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है, जो भगवान हनुमान की स्तुति में रचित है। इसका पाठ भक्तों को जीवन के कष्टों और बाधाओं से मुक्ति दिलाने, आत्मबल को बढ़ाने, और भगवान हनुमान की असीम कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इस स्तोत्र को पढ़ने से हनुमान जी के हृदय में बसे दिव्य गुणों और उनकी शक्ति का ध्यान किया जाता है।

श्री हनुमान हृदय मालिका के लाभ:

  1. संकटों से मुक्ति: हनुमान जी संकटमोचन माने जाते हैं, और इस स्तोत्र का पाठ भक्तों के जीवन के सभी प्रकार के संकटों, कष्टों और बाधाओं से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है।
  2. नकारात्मक शक्तियों से रक्षा: श्री हनुमान हृदय मालिका का पाठ करने से व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जा, भूत-प्रेत और बुरी नजर से सुरक्षा मिलती है। हनुमान जी का ध्यान नकारात्मक शक्तियों को दूर भगाता है।
  3. मानसिक और शारीरिक बल: इस स्तोत्र का पाठ भक्तों के अंदर शारीरिक और मानसिक शक्ति का संचार करता है। इससे आत्मबल और साहस बढ़ता है, और व्यक्ति जीवन की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होता है।
  4. रोगों से मुक्ति: हनुमान जी की आराधना करने से शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है। श्री हनुमान हृदय मालिका का पाठ विशेष रूप से स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में लाभकारी होता है।
  5. शत्रुओं पर विजय: यह स्तोत्र भक्तों को शत्रुओं और विरोधियों पर विजय प्राप्त करने में सहायक होता है। हनुमान जी की कृपा से सभी शत्रुओं का नाश होता है।
  6. भय और तनाव से मुक्ति: हनुमान जी के हृदय का ध्यान करने से भक्तों को भय और तनाव से मुक्ति मिलती है। इसका पाठ मानसिक शांति और स्थिरता लाता है।
  7. आध्यात्मिक उन्नति: भगवान हनुमान की कृपा से इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्त की आध्यात्मिक उन्नति होती है। यह साधना और ध्यान में एकाग्रता बढ़ाता है।
  8. सुख-समृद्धि: श्री हनुमान हृदय मालिका का नियमित पाठ घर में सुख-समृद्धि और शांति लाता है। हनुमान जी की कृपा से धन, वैभव और समृद्धि में वृद्धि होती है।

श्री हनुमान हृदय मालिका का पाठ विधि:

  1. स्नान और शुद्ध वस्त्र धारण करें: सबसे पहले स्नान करके शुद्ध और स्वच्छ वस्त्र पहनें। पूजा स्थल को साफ करें और हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाएं।
  2. दीपक और धूप जलाएं: पूजा स्थान पर दीपक और धूप या अगरबत्ती जलाएं। हनुमान जी को पुष्प, फल, मिठाई और चने-गुड़ का नैवेद्य अर्पित करें।
  3. श्री हनुमान का ध्यान करें: पाठ से पहले भगवान हनुमान का ध्यान करें और उनसे जीवन के कष्टों से मुक्ति की प्रार्थना करें। संकल्प लें कि आप भगवान हनुमान की स्तुति करते हुए इस स्तोत्र का पाठ करेंगे।
  4. संकल्प: पाठ शुरू करने से पहले अपने मन में एक संकल्प लें कि आप अपनी मनोकामना या किसी विशेष उद्देश्य के लिए इस स्तोत्र का पाठ कर रहे हैं।
  5. एकाग्रता के साथ पाठ करें: पूरे ध्यान और श्रद्धा के साथ श्री हनुमान हृदय मालिका का पाठ करें। पाठ के दौरान भगवान हनुमान के स्वरूप और उनके गुणों का ध्यान करें।
  6. पाठ का समय: इस स्तोत्र का पाठ किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन सुबह या शाम के समय इसका पाठ विशेष रूप से शुभ माना जाता है। मंगलवार और शनिवार के दिन इसका पाठ विशेष फलदायी होता है।
  7. आरती और प्रसाद: पाठ समाप्त होने के बाद भगवान हनुमान की आरती करें और उन्हें नैवेद्य (प्रसाद) अर्पित करें। आरती के बाद प्रसाद सभी को वितरित करें।
  8. ध्यान और समर्पण: पाठ के बाद कुछ समय के लिए ध्यान करें और भगवान हनुमान की कृपा का अनुभव करने का प्रयास करें। उनके प्रति समर्पण भाव रखें और उनकी शक्ति को महसूस करें।

विशेष: श्री हनुमान हृदय मालिका का नियमित पाठ करने से भगवान हनुमान की कृपा प्राप्त होती है। यह व्यक्ति को संकटों, कष्टों, और रोगों से मुक्ति दिलाने के साथ ही उसे शक्ति, साहस और आत्मविश्वास प्रदान करता है।

हनुमान हृदय मालिका

प्रेमभक्तिं मुक्तिं शक्तिं सर्वसिद्धिं प्रदायकम्
शिवरूपं परमशिवं सर्वशिवं जयो जयः ॥

पवन पुत्र हनुमान विचित्र | कृपा कटाक्ष अत्र तत्र सर्वत्र ॥१॥
परम वैष्णव राम शुद्ध भक्त | विशाल देह तुम अतीव शक्त ॥२॥
करि अंजनी माता कठिन तप | पवनाहार देहे दिव्य उत्ताप ॥३॥
सप्त चिरंजीवी नामे तुम ख्यात | रुद्र दिव्य अंशु होइ तुमे जात॥४॥
तुमे हि सदा सदा श्रीराम दास | भजुछ राम तुमे प्रत्येक श्वास ॥५॥

राम लक्ष्मण माता सीता सहित | धारण करि तुमे हृदये नित ॥६॥
हृदय फाड़ि तुम देल प्रमाण | करइ तुम हृदे राम धारण ॥७॥
अशोक बने तुमे कल उत्पात | वृक्ष ताडि पूणि असुर संतप्त ॥८॥
सीता मातान्कु कल तुमे दरशन | प्रभुन्क अंगूठि देइ देल प्रमाण ॥९॥
करुणा निधान नाम मुखे उचारइ | जानकी माता नयनु लोतक झरइ ॥१०॥

करिल पूणि तुमे लंका दहन | तुम प्रकोपे धरणी प्रकंपन ॥११॥
स्वर्णर लंका हेला छारखार | रावण सेना भये थरहर ॥१२॥
कर्णरे कुंडल तुम कुंचित केश | मने तुम चिन्तन सदा श्रीनिवास ॥१३॥
हस्ते दिशे गदा अत्यन्त सुशोभित | सिंदूर मुख तुम दिशइ प्रशांत ॥१४॥
बाल काले तुमे भानु पाशे जाई | बाल सुलभ मन खाद भाबई ॥१५॥

एकशत अष्ट धरा व्यास जाहिँ | चक्षु पलके तुमे पार करइ ॥१६॥
शनि होइ तुम प्रिय मित्र हनुमान | तुम नाम नेले जेह्ने हुअइ प्रसन्न ॥१७॥
उठाइल पर्वत गंधमार्धन | ओषधे पोषणे जीवित लक्ष्मण ॥१८॥
अर्जुन रथ उर्धे तुमे बिराजील | राम नाम तुमे सदा हृदे धरिल ॥१९॥
अंजनी पुत्र केशरी सुनन्दन | तुम कृपे मिलइ राम मोहन ॥२०॥

तुमरि नाम नेले सबु संकट दूर | जय जय जय हनुमान महावीर ॥२१॥
तुम स्तुति कले हुए आत्म उन्नति | हृदये प्रष्पुटित सदा प्रभुभक्ति ॥२२॥
भूत असुर सबु जेते मंद शक्ति | तुम नामे नेले टले महा विपत्ति ॥२३॥
तुम कृपारे हरि भक्ति हुए प्राप्ति | अनन्त जनम कलेसू हुए मुक्ति ॥२४॥
संकट मोचन जय हनुमान | बजरंगबली महा बलवान ॥२५॥

भक्ति मुक्ति तुमे महाप्रीति दाता | तुम कृपे तरे भक्त महारास्ता ॥२६॥
हिमालय गिरी होइ तुम तपभूमि | राम प्रीत योगे लीन हनुमन्त स्वामी ॥२७॥
भविष्य कल्परे तुम सृष्टि कर्ता होइ | चतुरानन रूपे सृजन करइ ॥२८॥
मुक्त पुरुष रुद्र जय हनुमन्त | पारुनि कही तुम लीला अनन्त ॥२९॥
जय हनुमान दिव्य मारुती | करूअछि मुहिँ तुमर आरती ॥ ३० ॥

कहते कृष्णदास तुम दिव्य गाथा | हरि शरणे सदा रखी मूढ़ मथा ॥३१॥
हरि दर्शन मिलन प्रेम आशा | तुम दयारे पूरे सर्व पिपासा ॥३२॥
सद्गुरु रुपे तुमे होइण प्रकट | दिअ ज्ञान दूर कर महासंकट ॥३३॥
जेउँ नारी करइ पाठ एहा नित | संसार सुखमय स्वामी प्रीति प्राप्त ॥३४॥
विद्यार्थी जन करि एहा अध्ययन | सफल सिद्धि प्रापत सुखी जीवन ॥३५॥

संत साधव कले एहा पठन | हुए अविलम्बे हरि दरशन ॥३६॥
तरुणी कन्या पढ़ी हनुमान मालिका | मिले दिव्य ज्ञानी पति हुअइ सेविका ॥३७॥
श्रीराम जय राम जय जय राम | संकट मोचन जय सीता राम ॥३८॥
श्रीमालिका हनुमान हृदय | कहे कृष्णदास भक्त तनय ॥३९॥
प्रभु चरणे रहू सदा ता मन | प्रभु चिन्तने जाउ पुरा जीबन ॥४०॥

हनुमंतं रामभक्तं रुद्रअंशं ब्रह्मचारीं
पवनसुतं मारुतीं तवपदौ नमामि ॥

॥ इति श्री कृष्णदासः विरचित ‘श्री हनुमान हृदय मालिका’ सम्पूर्णम् ॥


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