महामाया अष्टकम् – Mahamaya Ashtakam in Hindi
देवी महामाया की स्तुति में रचित एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है, जिसमें देवी की महिमा, शक्ति और उनके विभिन्न रूपों का वर्णन किया गया है। यह अष्टक देवी के अद्वितीय रूप और उनकी शक्ति को समर्पित है, जो सृष्टि की रचयिता, पालनकर्ता और संहारकर्ता हैं। देवी महामाया की आराधना करने से जीवन में अनेकों लाभ प्राप्त होते हैं।
महामाया अष्टकम् के लाभ:
- संकटों से मुक्ति: महामाया अष्टकम् का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाले सभी प्रकार के संकट और बाधाओं का नाश होता है। देवी की कृपा से कठिन से कठिन समस्याओं का समाधान मिलता है।
- नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा: देवी महामाया की स्तुति नकारात्मक ऊर्जा, बुरी नजर, तंत्र-मंत्र और दुष्ट आत्माओं से सुरक्षा प्रदान करती है। यह व्यक्ति को हर प्रकार की नकारात्मकता से बचाती है।
- आत्मबल और साहस: देवी महामाया की कृपा से व्यक्ति के अंदर आत्मबल और साहस का संचार होता है। जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए मानसिक और शारीरिक शक्ति प्राप्त होती है।
- धन और समृद्धि की प्राप्ति: इस अष्टक का पाठ देवी की कृपा से धन-धान्य, समृद्धि और संपन्नता प्रदान करता है। देवी की उपासना करने से घर में सुख और समृद्धि का वास होता है।
- शत्रुओं पर विजय: देवी महामाया अष्टकम् का पाठ करने से व्यक्ति को अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। शत्रुओं की हर प्रकार की योजनाओं का नाश होता है और देवी की कृपा से सभी विरोधियों से मुक्ति मिलती है।
- मानसिक शांति और संतुलन: महामाया अष्टकम् का नियमित पाठ मानसिक शांति और संतुलन प्रदान करता है। इससे मन की चंचलता समाप्त होती है और व्यक्ति को मानसिक स्थिरता प्राप्त होती है।
- आध्यात्मिक उन्नति: देवी महामाया की आराधना करने से व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होती है। इस अष्टक का पाठ व्यक्ति के भीतर ध्यान और साधना के प्रति जागरूकता को बढ़ाता है और उसे परमात्मा की ओर अग्रसर करता है।
- कष्टों का निवारण: इस अष्टक का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाले सभी प्रकार के कष्टों का निवारण होता है। देवी महामाया की कृपा से जीवन के सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति मिलती है।
महामाया अष्टकम् का पाठ विधि:
- स्नान और शुद्ध वस्त्र: सबसे पहले स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें। पूजा स्थान को साफ-सुथरा रखें और देवी महामाया की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं।
- दीपक और धूप जलाएं: देवी महामाया की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक और धूप जलाएं। पूजा के लिए पुष्प, फल, और नैवेद्य रखें।
- संकल्प: पाठ से पहले मन में संकल्प लें कि आप देवी महामाया की स्तुति करने जा रहे हैं। देवी से अपने कष्टों का निवारण और जीवन में शांति, समृद्धि की प्रार्थना करें।
- पाठ विधि: महामाया अष्टकम् का पाठ पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ करें। मन में देवी के स्वरूप और उनकी शक्ति का ध्यान करते हुए पाठ करें।
- पाठ का समय: महामाया अष्टकम् का पाठ किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन प्रातःकाल और संध्या के समय इसका पाठ विशेष फलदायी माना जाता है। नवरात्रि, अष्टमी, या पूर्णिमा जैसे विशेष अवसरों पर इसका पाठ और भी अधिक लाभकारी होता है।
- आरती और प्रसाद: पाठ के बाद देवी महामाया की आरती करें और उन्हें नैवेद्य (प्रसाद) अर्पित करें। आरती के बाद प्रसाद सभी को वितरित करें।
- ध्यान और समर्पण: पाठ के बाद कुछ समय ध्यान करें। देवी महामाया की कृपा का अनुभव करने की कोशिश करें और उनके प्रति समर्पण भाव रखें।
विशेष: महामाया अष्टकम् का नियमित पाठ करने से देवी महामाया की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में शांति, समृद्धि और सुख-समृद्धि आती है।
महामाय़ा अष्टकम्
भद्रकाळी बिश्बमाता जगत्स्रोत कारिणी
शिबपत्नी पापहर्त्री सर्वभूत तारिणी
स्कन्दमाता शिवा शिवा सर्वसृष्टि धारिणी
नमः नमः महामाय़ा ! हिमाळय-नन्दिनी ॥ १
नारीणाम्च संखिन्यापि हस्तिनी बा चित्रिणी
पद्मगन्धा पुष्परूपा सम्मोहिनी पद्मिनी
मातृ-पुत्री-भग्नि-भार्य़ा सर्वरूपा भबानी
नमः नमः महामाय़ा ! भबभय-खण्डिनी ॥ २
पाप-ताप-भब-भय़ भूतेश्बरी कामिनी
तब-कृपा-सर्व-क्षय सर्वजना-बन्दिनी
प्रेम-प्रीति-लज्जा-न्याय नारीणाञ्च-मोहिनी
नमः नमः महामाय़ा ! ॠण्डमाळा-धारिणी ॥ ३
खड्ग-चक्र-हस्तेधारी संखीनि-सुनादिनी
संमोहना-रूपा-नारी हृदय-विदारिणी
अहंकार-कामरूपा-भुवन-विळासिनी
नमः नमः महामाय़ा ! जगत-प्रकाशिनी ॥ ४
लह्व-लह्व-तब-जिह्वा पापाशुर मर्द्धिनी
खण्ड-गण्ड-मुण्ड-स्पृहा शोभाकान्ति बर्द्धिनी
अङ्ग-भङ्ग-रंग-काय़ा माय़ाछन्द छन्दिनी
नमः नमः महामाय़ा ! दुःखशोक नाशिनी ॥ ५
धन-जन-तन-मान रूपेण त्वम् संस्थिता
काम-क्रोध-लोभ-मोह-मद बापि मूढता
निद्राहार-काम-भय़ पशुतुल्य़ जीबनात्
नमः नमः महामाय़ा ! कुरु मुक्त बन्धनात् ॥ ६
मैत्री-दय़ा-लक्ष्मी-बृत्ति-अन्ते जीब लक्षणा
लज्जा-छाय़ा-तृष्णा-क्षुधा बन्धनस्य़ कारणा
तुष्टि-बुद्धि-श्रद्धा-भक्ति सदा मुक्ति दाय़ीका
शान्ति-भ्रान्ति-क्ळान्ति-क्षान्ति तब रूपा अनेका
प्रीति-स्मृति-जाति-शक्ति-रूपा माय़ा अभेद्य़ा
नमः नमः महामाय़ा ! नमस्त्वम् महाबिद्य़ा ॥ ७
नबदुर्गा-महाकाळि सर्वाङ्गभूषाबृत्ताम्
भुबनेश्वरी-मातङ्गी हन्तु मधुकैटभं
विमळा-तारा-षोड़शी हस्ते खड्ग धारीणि
धुमाबति-मा-बगळा महिषासुर मर्द्धिनी
बाळात्रिपुरासुन्दरी त्रिभुबन मोहिनी
नमः नमः महामाय़ा ! सर्वदुःख हारिणी ॥ ८
मम माता लोके मर्त्त्य़ कृष्णदास तब भृत्त्य़
य़दा तदा य़था तथा माय़ा छिन्न मोक्ष कथा
सदा सदा तव भिक्षा कृपा दीने भब रक्षा
नम नम महामाय़ा कृष्ण दासे तब दय़ा ॥ ९
॥ इति कृष्णदास विरचित महामाय़ा अष्टकम् यः पठति सः भव सागर निस्तरति ॥
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