शम्भु स्तुति – नमामि शम्भुं पुरुषं पुराणं Shambhu Stuti Lyriscs
लंका पर प्रवेश से पूर्व भगवान श्री राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव का आह्वान किया था। शम्भु स्तुति, जिसे भगवान राम द्वारा रचित माना जाता है, का उल्लेख ब्रह्म पुराण में मिलता है।
शम्भु स्तुति भगवान शिव की महिमा का गुणगान करने वाली एक अत्यंत प्रभावशाली और पवित्र स्तुति है। यह स्तुति भगवान राम द्वारा रचित मानी जाती है और इसका उल्लेख ब्रह्म पुराण में मिलता है। शम्भु स्तुति का नियमित रूप से पाठ करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन के सभी कष्टों का निवारण होता है।
शम्भु स्तुति के लाभ:
- संकटों से मुक्ति: शम्भु स्तुति का पाठ करने से जीवन के सभी प्रकार के संकटों और कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है। भगवान शिव अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें कष्टों से मुक्त करते हैं।
- शत्रुओं पर विजय: इस स्तुति का पाठ शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में सहायक होता है। भगवान शिव की कृपा से शत्रुओं की बुरी योजनाएं विफल हो जाती हैं।
- मानसिक शांति और स्थिरता: शम्भु स्तुति का पाठ करने से मानसिक शांति और स्थिरता प्राप्त होती है। भगवान शिव की कृपा से चिंता और तनाव से मुक्ति मिलती है।
- नकारात्मक शक्तियों से रक्षा: भगवान शिव का स्मरण करने से व्यक्ति नकारात्मक ऊर्जाओं, तंत्र-मंत्र, और बुरी नजर से सुरक्षित रहता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: शम्भु स्तुति का नियमित पाठ भक्त को आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है। भगवान शिव की आराधना से साधना में एकाग्रता और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है।
- स्वास्थ्य और आरोग्य: भगवान शिव की कृपा से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह स्तुति रोगों और कष्टों से मुक्ति दिलाने में सहायक होती है।
- सुख-समृद्धि: शम्भु स्तुति का पाठ करने से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का अनुभव होता है। भगवान शिव का आशीर्वाद घर-परिवार में खुशहाली और ऐश्वर्य लाता है।
- भय और चिंता से मुक्ति: भगवान शिव की शम्भु स्तुति का पाठ सभी प्रकार के भय और चिंता को दूर करता है और व्यक्ति के मन को स्थिर और शांत करता है।
शम्भु स्तुति का पाठ विधि:
- स्नान और शुद्ध वस्त्र धारण करें: सबसे पहले स्नान करके शुद्ध और स्वच्छ वस्त्र पहनें। पूजा स्थल को साफ रखें और भगवान शिव की प्रतिमा या शिवलिंग के सामने आसन लगाएं।
- दीपक और धूप जलाएं: पूजा स्थल पर दीपक और धूप जलाएं। भगवान शिव को पुष्प, बिल्वपत्र, चंदन, फल, और नैवेद्य अर्पित करें। शिवलिंग पर जल, दूध या गंगा जल चढ़ाएं।
- संकल्प लें: शम्भु स्तुति का पाठ करने से पहले भगवान शिव से अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए संकल्प लें। भगवान से अपने जीवन के कष्टों का निवारण करने की प्रार्थना करें।
- शम्भु स्तुति का पाठ करें: श्रद्धा और एकाग्रता के साथ शम्भु स्तुति का पाठ करें। भगवान शिव के विभिन्न रूपों और उनके गुणों का ध्यान करें।
- मंत्र उच्चारण करें: “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जप करते हुए भगवान शिव का स्मरण करें। यह मंत्र भगवान शिव की कृपा शीघ्र प्राप्त कराने में सहायक होता है।
- आरती करें: पाठ समाप्त होने के बाद भगवान शिव की आरती करें। दीपक घुमाते हुए भगवान शिव के गुणों का स्मरण करें और भक्ति भाव से उनकी आराधना करें।
- प्रसाद वितरण करें: पूजा के बाद भगवान शिव को अर्पित किया गया प्रसाद सभी भक्तों में बांटें। प्रसाद ग्रहण करने के बाद भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करें।
- ध्यान और समर्पण: अंत में कुछ समय के लिए ध्यान करें और भगवान शिव के प्रति समर्पण का भाव रखें। भगवान शिव की कृपा और शांति का अनुभव करने का प्रयास करें।
विशेष: शम्भु स्तुति का नियमित पाठ करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। यह स्तुति जीवन के संकटों को दूर करने, शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने और सुख-शांति और समृद्धि लाने वाली मानी जाती है।
शम्भु स्तुति – नमामि शम्भुं पुरुषं पुराणं
नमामि शम्भुं पुरुषं पुराणं
नमामि सर्वज्ञमपारभावम् ।
नमामि रुद्रं प्रभुमक्षयं तं
नमामि शर्वं शिरसा नमामि ॥१॥
नमामि देवं परमव्ययंतं
उमापतिं लोकगुरुं नमामि ।
नमामि दारिद्रविदारणं तं
नमामि रोगापहरं नमामि ॥२॥
नमामि कल्याणमचिन्त्यरूपं
नमामि विश्वोद्ध्वबीजरूपम् ।
नमामि विश्वस्थितिकारणं तं
नमामि संहारकरं नमामि ॥३॥
नमामि गौरीप्रियमव्ययं तं
नमामि नित्यंक्षरमक्षरं तम् ।
नमामि चिद्रूपममेयभावं
त्रिलोचनं तं शिरसा नमामि ॥४॥
नमामि कारुण्यकरं भवस्या
भयंकरं वापि सदा नमामि ।
नमामि दातारमभीप्सितानां
नमामि सोमेशमुमेशमादौ ॥५॥
नमामि वेदत्रयलोचनं तं
नमामि मूर्तित्रयवर्जितं तम् ।
नमामि पुण्यं सदसद्व्यातीतं
नमामि तं पापहरं नमामि ॥६॥
नमामि विश्वस्य हिते रतं तं
नमामि रूपापि बहुनि धत्ते ।
यो विश्वगोप्ता सदसत्प्रणेता
नमामि तं विश्वपतिं नमामि ॥७॥
यज्ञेश्वरं सम्प्रति हव्यकव्यं
तथागतिं लोकसदाशिवो यः ।
आराधितो यश्च ददाति सर्वं
नमामि दानप्रियमिष्टदेवम् ॥८॥
नमामि सोमेश्वरंस्वतन्त्रं
उमापतिं तं विजयं नमामि ।
नमामि विघ्नेश्वरनन्दिनाथं
पुत्रप्रियं तं शिरसा नमामि ॥९॥
नमामि देवं भवदुःखशोक
विनाशनं चन्द्रधरं नमामि ।
नमामि गंगाधरमीशमीड्यं
उमाधवं देववरं नमामि ॥१०॥
नमाम्यजादीशपुरन्दरादि
सुरासुरैरर्चितपादपद्मम् ।
नमामि देवीमुखवादनानां
ईक्षार्थमक्षित्रितयं य ऐच्छत् ॥११॥
पंचामृतैर्गन्धसुधूपदीपैः
विचित्रपुष्पैर्विविधैश्च मन्त्रैः ।
अन्नप्रकारैः सकलोपचारैः
सम्पूजितं सोममहं नमामि ॥१२॥
॥ इति श्रीब्रह्ममहापुराणे शम्भुस्तुतिः सम्पूर्णा ॥
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