माँ दुर्गा देव्यापराध क्षमा प्रार्थना स्तोत्रं Maa Durga Kshama Prarthna Stotram in hindi
माँ दुर्गा देव्यापराध क्षमा प्रार्थना स्तोत्रं एक अत्यंत पवित्र और भावपूर्ण स्तोत्र है, जिसमें भक्त देवी माँ से अपनी अनजाने में हुई भूलों और अपराधों के लिए क्षमा मांगता है। यह स्तोत्र देवी माँ से अपने जीवन के दोषों और पापों के लिए क्षमायाचना करने के लिए गाया जाता है। इसका पाठ भक्त को मानसिक शांति, आंतरिक शुद्धि और देवी माँ की असीम कृपा प्राप्त कराने में सहायक होता है।
माँ दुर्गा देव्यापराध क्षमा प्रार्थना स्तोत्रं के लाभ:
- अपराधों से मुक्ति: इस स्तोत्र का नियमित पाठ भक्त के जीवन के पापों और अपराधों से मुक्ति दिलाता है। देवी माँ अपनी करुणा और ममता से भक्त के अपराधों का निवारण करती हैं।
- आध्यात्मिक शुद्धि: यह स्तोत्र व्यक्ति की आत्मा को शुद्ध करता है और उसे आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करता है। इसका पाठ करने से व्यक्ति के भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- मानसिक शांति और संतुलन: जब व्यक्ति अपने द्वारा की गई त्रुटियों के लिए पश्चाताप करता है, तो उसे मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त होता है। यह स्तोत्र आंतरिक अशांति को दूर करने में सहायक होता है।
- देवी की कृपा प्राप्ति: देवी माँ की करुणा असीमित होती है। इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्त को देवी की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है, जिससे उसका जीवन सुख-समृद्धि और संतोष से परिपूर्ण होता है।
- संकटों से मुक्ति: यह स्तोत्र जीवन के संकटों और कष्टों को दूर करने में सहायक होता है। देवी माँ की कृपा से भक्त के जीवन की सभी बाधाएं और कष्ट समाप्त हो जाते हैं।
- भय और चिंता से मुक्ति: देवी माँ का आशीर्वाद प्राप्त करने से सभी प्रकार के भय और चिंता का नाश होता है। भक्त को मानसिक और शारीरिक भय से मुक्ति मिलती है।
- भक्ति और समर्पण: यह स्तोत्र भक्त के हृदय में भक्ति और समर्पण की भावना को जागृत करता है। इससे व्यक्ति अपने जीवन में धर्म और अध्यात्म के मार्ग पर चलता है।
- शत्रुओं से रक्षा: देवी माँ का यह स्तोत्र शत्रुओं और विरोधियों से रक्षा करता है। देवी माँ की कृपा से भक्त अपने जीवन में शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है।
माँ दुर्गा देव्यापराध क्षमा प्रार्थना स्तोत्रं का पाठ विधि:
- स्नान और शुद्ध वस्त्र धारण करें: सबसे पहले स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को साफ करें और माँ दुर्गा की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाएं।
- दीपक और धूप जलाएं: देवी माँ के सामने दीपक और धूप जलाएं। पूजा के लिए फूल, फल और मिठाई अर्पित करें।
- संकल्प लें: पाठ से पहले माँ दुर्गा का ध्यान करें और उनसे अपने अपराधों के लिए क्षमा मांगते हुए संकल्प लें कि आप अपने द्वारा की गई त्रुटियों के लिए क्षमायाचना कर रहे हैं।
- एकाग्रता और भक्ति के साथ पाठ करें: पूरी एकाग्रता और श्रद्धा के साथ देव्यापराध क्षमा प्रार्थना स्तोत्रं का पाठ करें। पाठ करते समय अपनी त्रुटियों और पापों का ध्यान करें और देवी माँ से क्षमा की प्रार्थना करें।
- पाठ का समय: इस स्तोत्र का पाठ दिन के किसी भी समय किया जा सकता है, परंतु प्रातःकाल और संध्या के समय इसका पाठ विशेष रूप से शुभ माना जाता है। नवरात्रि के समय इसका पाठ विशेष लाभकारी होता है।
- आरती और प्रसाद अर्पण करें: पाठ समाप्त होने के बाद देवी माँ की आरती करें। उन्हें पुष्प, फल, और मिठाई अर्पित करें और फिर प्रसाद को सभी भक्तों में बांटें।
- ध्यान और समर्पण: पाठ के बाद कुछ समय के लिए ध्यान करें। देवी माँ की कृपा और शांति का अनुभव करें और उनके प्रति समर्पण का भाव रखें।
विशेष: माँ दुर्गा देव्यापराध क्षमा प्रार्थना स्तोत्रं का नियमित पाठ करने से भक्त देवी माँ की कृपा से अपने जीवन के पापों और अपराधों से मुक्ति प्राप्त करता है। देवी माँ की करुणा और प्रेम से भक्त का जीवन सुख, शांति और समृद्धि से भर जाता है।
श्री देव्यापराध क्षमापन स्तोत्रं ॥
न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथा: ।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् ॥ 1 ॥
विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत् ।
तदेतत्क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥ 2 ॥
पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहव: सन्ति सरला:
परं तेषां मध्ये विरलतरलोSहं तव सुत: ।
मदीयोSयं त्याग: समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥ 3 ॥
जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया ।
तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥ 4 ॥
परित्यक्ता देवा विविधविधिसेवाकुलतया
मया पंचाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि ।
इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता
निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम् ॥ 5 ॥
श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातंको रंको विहरति चिरं कोटिकनकै: ।
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जन: को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ ॥ 6 ॥
चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपति: ।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम् ॥ 7 ॥
न मोक्षस्याकाड़्क्षा भवविभववाण्छापि च न मे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुन: ।
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपत: ॥ 8 ॥
नाराधितासि विधिना विविधोपचारै:
किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभि: ।
श्यामे त्वमेव यदि किंचन मय्यनाथे
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव ॥ 9 ॥
आपत्सु मग्न: स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि ।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथा:
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति ॥ 10 ॥
जगदम्ब विचित्रमत्र किं
परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि ।
अपराधपरम्परावृतं
न हि माता समुपेक्षते सुतम् ॥ 11 ॥
मत्सम: पातकी नास्ति
पापघ्नी त्वत्समा न हि ।
एवं ज्ञात्वा महादेवि
यथा योग्यं तथा कुरु ॥ 12 ॥
इति श्रीमच्छंकराचार्यकृतं देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्।
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Maa Durga Kshama Prarthna 🙏🙏🙏