सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्रम् -Siddha Kunjika Stotram in Hindi
देवी दुर्गा के शक्तिशाली मंत्रों में से एक है, जो विशेष रूप से दुर्गासप्तशती का सार माना जाता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से देवी दुर्गा की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है और दुर्गासप्तशती का सम्पूर्ण पाठ करने के समान फल मिलता है। सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्रम् को एक अत्यंत प्रभावशाली और त्वरित फलदायी स्तोत्र माना गया है, जो जीवन के सभी संकटों और समस्याओं का समाधान करता है।
सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्रम् के लाभ:
- सभी बाधाओं से मुक्ति: इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से जीवन की सभी बाधाएं, चाहे वे मानसिक, शारीरिक या आध्यात्मिक हों, समाप्त हो जाती हैं। देवी दुर्गा की कृपा से सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान मिलता है।
- दुश्मनों पर विजय: सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्रम् का पाठ करने से शत्रुओं और विरोधियों पर विजय प्राप्त होती है। देवी दुर्गा की शक्ति से व्यक्ति को अपने शत्रुओं का नाश करने की शक्ति मिलती है।
- रोगों से मुक्ति: इसका पाठ शारीरिक और मानसिक रोगों से छुटकारा दिलाने में सहायक होता है। देवी की कृपा से आरोग्यता प्राप्त होती है।
- धन, समृद्धि और सफलता: सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्रम् का पाठ करने से व्यक्ति को धन-धान्य, समृद्धि और जीवन में सफलता प्राप्त होती है। यह स्तोत्र धन वृद्धि और समृद्धि लाने के लिए भी अत्यंत लाभकारी है।
- भय और चिंता से मुक्ति: इस स्तोत्र का पाठ करने से सभी प्रकार के भय, चिंता और मानसिक अशांति समाप्त होती है। देवी दुर्गा की कृपा से मन को शांति और स्थिरता प्राप्त होती है।
- दुर्गासप्तशती का संक्षिप्त पाठ: सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्रम् का पाठ दुर्गासप्तशती के सभी अध्यायों का पाठ करने के बराबर माना जाता है। यह उन लोगों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है जो दुर्गासप्तशती का पूर्ण पाठ नहीं कर सकते।
- सिद्धि और रक्षा: इस स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति को त्वरित सिद्धियां प्राप्त होती हैं और उसे जीवन में हर प्रकार की सुरक्षा और रक्षा प्राप्त होती है। देवी दुर्गा की कृपा से जीवन में आंतरिक और बाहरी शांति बनी रहती है।
- वांछित इच्छाओं की पूर्ति: जो व्यक्ति अपनी विशेष मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए श्रद्धा और विश्वास के साथ इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसे देवी दुर्गा की कृपा से उसकी इच्छाओं की पूर्ति होती है।
सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्रम् का पाठ विधि:
- स्नान और शुद्ध वस्त्र: सबसे पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को साफ रखें और देवी दुर्गा की मूर्ति या चित्र के सामने आसन लगाएं।
- दीपक और धूप जलाएं: पूजा स्थल पर दीपक और धूप जलाएं। देवी को पुष्प, फल और मिठाई अर्पित करें। आप उन्हें चढ़ावा के रूप में दुर्गा सप्तशती से संबंधित प्रसाद भी अर्पित कर सकते हैं।
- आरंभिक प्रार्थना: पाठ से पहले देवी दुर्गा का ध्यान करें और उनसे अपने जीवन के कष्टों और समस्याओं को दूर करने की प्रार्थना करें। देवी से अपनी मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करें।
- संकल्प: पाठ करने से पहले मन में संकल्प लें कि आप देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त करने और अपनी समस्याओं का समाधान पाने के लिए इस स्तोत्र का पाठ कर रहे हैं।
- पाठ विधि: सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्रम् का पाठ श्रद्धा और एकाग्रता के साथ करें। पाठ के दौरान देवी के विभिन्न रूपों और उनके अद्वितीय शक्तियों का ध्यान करें।
- पाठ का समय: इस स्तोत्र का पाठ दिन के किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन प्रातःकाल या संध्या के समय इसका पाठ विशेष रूप से लाभकारी होता है। नवरात्रि के दिनों में इसका पाठ अत्यंत फलदायी माना जाता है।
- आरती और प्रसाद: पाठ समाप्त होने के बाद देवी दुर्गा की आरती करें और उन्हें प्रसाद अर्पित करें। आरती के बाद प्रसाद सभी को बांटें।
- ध्यान और समर्पण: पाठ के बाद कुछ समय के लिए ध्यान करें और देवी दुर्गा की कृपा और शांति का अनुभव करें। देवी के प्रति समर्पण भाव रखें और उनसे आशीर्वाद की प्रार्थना करें।
विशेष: सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्रम् का नियमित और विधिपूर्वक पाठ करने से देवी दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह स्तोत्र भक्तों को सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति दिलाने के साथ-साथ जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का अनुभव कराता है।
॥ दुर्गा सप्तशती: सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् ॥
शिव उवाच:
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् ।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत ॥1॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥2॥
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् ।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥3॥
गोपनीयं प्रयत्नेनस्वयोनिरिव पार्वति ।
मारणं मोहनं वश्यंस्तम्भनोच्चाटनादिकम् ।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत्कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥4॥
॥ अथ मन्त्रः ॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लींचामुण्डायै विच्चे ॥
ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालयज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वलहं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥
॥ इति मन्त्रः ॥
नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि ।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥1॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि ।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे ॥2॥
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते ॥3॥
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी ।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि ॥4॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी ।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥5॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी ।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥6॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं ।
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥7॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे ॥8॥
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रंमन्त्रजागर्तिहेतवे ।
अभक्ते नैव दातव्यंगोपितं रक्ष पार्वति ॥
यस्तु कुञ्जिकाया देविहीनां सप्तशतीं पठेत् ।
न तस्य जायतेसिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥
॥ इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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