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श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्रम् (Vindhyeshwari Stotram)

श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्रम् -Shri Vindhyeshwari Stotram

माता विंध्यवासिनी की स्तुति में रचित एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है। यह स्तोत्र देवी के विंध्येश्वरी रूप की आराधना के लिए प्रसिद्ध है, जो विंध्याचल पर्वत पर विराजमान हैं। इसका नियमित पाठ भक्तों को शांति, समृद्धि, और शक्ति प्रदान करता है। विंध्येश्वरी स्तोत्रम् देवी की महिमा का बखान करता है और उन्हें समर्पित है।

विंध्येश्वरी स्तोत्रम् के लाभ:

  1. संकटों से मुक्ति: इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से जीवन के सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलती है। देवी की कृपा से जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान होता है।
  2. नकारात्मक शक्तियों से रक्षा: देवी विंध्येश्वरी की स्तुति नकारात्मक शक्तियों, भूत-प्रेत और दुष्ट आत्माओं से सुरक्षा प्रदान करती है।
  3. मनोकामनाओं की पूर्ति: भक्त यदि अपनी किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए श्रद्धा और विश्वास के साथ इस स्तोत्र का पाठ करते हैं, तो देवी उनकी इच्छाओं को पूर्ण करती हैं।
  4. आध्यात्मिक उन्नति: देवी विंध्येश्वरी की आराधना भक्तों को आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने में सहायता करती है। इसका पाठ मानसिक शांति और आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ाता है।
  5. शत्रुओं पर विजय: इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों को अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। देवी की कृपा से सभी विरोधी शक्तियों का नाश होता है।
  6. धन और समृद्धि: देवी विंध्येश्वरी की कृपा से धन-धान्य में वृद्धि होती है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
  7. स्वास्थ्य लाभ: इसका पाठ शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार लाने के लिए भी लाभकारी माना जाता है। देवी की आराधना से आरोग्य की प्राप्ति होती है।

विंध्येश्वरी स्तोत्रम् का पाठ विधि:

  1. स्नान और शुद्धता: सबसे पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें। पूजा स्थान को स्वच्छ करें और वहां माता विंध्येश्वरी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  2. दीप प्रज्वलन: देवी की प्रतिमा के सामने दीपक जलाएं और धूप या अगरबत्ती का उपयोग करें। देवी को पुष्प, फल, और नैवेद्य अर्पित करें।
  3. आसन और एकाग्रता: पूजा करते समय पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। मन को शांत रखें और पूरी एकाग्रता के साथ देवी की आराधना करें।
  4. संकल्प: पाठ शुरू करने से पहले देवी से अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए संकल्प लें। देवी से अपने कष्टों का निवारण और सुरक्षा की प्रार्थना करें।
  5. स्त्रोत पाठ: श्रद्धा और भक्ति के साथ विंध्येश्वरी स्तोत्रम् का पाठ करें। पाठ करते समय देवी की दिव्य शक्तियों का ध्यान करें और उनके प्रति समर्पण भाव रखें।
  6. पाठ का समय: यह स्तोत्र किसी भी समय पढ़ा जा सकता है, लेकिन प्रातःकाल या संध्या के समय इसका पाठ विशेष फलदायी होता है। नवरात्रि के दिनों में इसका पाठ अत्यधिक लाभकारी माना जाता है।
  7. आहुति और आरती: पाठ समाप्त होने के बाद देवी की आरती करें। देवी को पुष्प, फल, और मिठाई अर्पित करें। देवी से अपनी समस्याओं के समाधान और जीवन में शांति और समृद्धि की प्रार्थना करें।
  8. ध्यान और समर्पण: पाठ के बाद कुछ समय ध्यान करें और देवी के प्रति समर्पित भाव से उनकी कृपा का अनुभव करें।

इस विधि से विंध्येश्वरी स्तोत्रम् का पाठ करने से देवी विंध्येश्वरी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में शांति, समृद्धि, और सुरक्षा बनी रहती है।

श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्रम्

निशुम्भ शुम्भ गर्जनी,
प्रचण्ड मुण्ड खण्डिनी ।
बनेरणे प्रकाशिनी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

त्रिशूल मुण्ड धारिणी,
धरा विघात हारिणी ।
गृहे-गृहे निवासिनी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

दरिद्र दुःख हारिणी,
सदा विभूति कारिणी ।
वियोग शोक हारिणी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

लसत्सुलोल लोचनं,
लतासनं वरप्रदं ।
कपाल-शूल धारिणी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

कराब्जदानदाधरां,
शिवाशिवां प्रदायिनी ।
वरा-वराननां शुभां,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

कपीन्द्न जामिनीप्रदां,
त्रिधा स्वरूप धारिणी ।
जले-थले निवासिनी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

विशिष्ट शिष्ट कारिणी,
विशाल रूप धारिणी ।
महोदरे विलासिनी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

पुंरदरादि सेवितां,
पुरादिवंशखण्डितम्‌ ।
विशुद्ध बुद्धिकारिणीं,
भजामि विन्ध्यवासिनीं ॥


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